वस्ल की रात को थोड़ा सा बढ़ा दे कोई
हिज्र के जलते चराग़ों को हवा दे कोई
दस्त-ए-शफ़क़त को रखे सर पे दुआ दे कोई
मेरी बीमारी का तावीज़ बना दे कोई
तंग करती है बहुत ख़ाक उदासी की इसे
ज़ेहन पर याद का पैवंद लगा दे कोई
उस मुसव्विर के मैं सुन हाथ कलम कर दूँगा
बे-रिदा गर तिरी तस्वीर बना दे कोई
हुस्न-ए-यूसुफ़ सर-ए-बाज़ार चला आया है
क़स्र में जा के ज़ुलैख़ा को बता दे कोई
नींद ग़फ़लत की इन्हें सोते ज़माना गुज़रा
हज़रत-ए-दिल का ज़रा शाना हिला दे कोई
ऐ दग़ाबाज़ ये ख़ालिक़ से दुआ है मेरी
इश्क़ में तुझको तिरे जैसे दग़ा दे कोई
बहर क्या होती है ये नज़्म ग़ज़ल सब क्या है
शाइरी के हमें आदाब सिखा दे कोई
ज़ख़्म-ए-दिल भरने लगे हैं मिरे आकर फिर से
इन पे मरहम ज़रा फ़ुर्क़त का लगा दे कोई
हम नहीं जाएँगे सहरा में उड़ाने मिट्टी
बज़्म-ए-शोरा का शजर हमको पता दे कोई
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