हुनर ये आज़माया जा रहा है
मुझे दिल से निकाला जा रहा है
हमारा दिल फ़क़त इक दिल नहीं ये
ख़ुदा के घर को तोड़ा जा रहा है
हमारे इश्क़ का फ़रहाद क़िस्सा
किताबों में पढ़ाया जा रहा है।
दिल-ए-नादाँ नहीं लगता तेरे बिन
उसे ख़त में ये लिक्खा जा रहा है।
कहीं नज़रें न कर बैठे हिमाकत
यूँ नज़रों को चुराया जा रहा है
मोहब्बत ला दवा है ला दवा दुख
हर इक आशिक़ ये कहता जा रहा है।
तुम्हारे इश्क़ में दश्त-ए-जुनूँ को
तुम्हारा क़ैस लैला जा रहा है
ज़माना देख कर कहता है मुझको
वो देखो ग़म का मारा जा रहा है
था वादा बिछड़े तो मर जाएँगे हम
सो अब वादा निभाया जा रहा है
वो उतना याद आए जा रहे हैं
उन्हें जितना भुलाया जा रहा है
मोहब्बत है ज़माने को समर से
शजर को हाय काटा जा रहा है
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