रोज़ सारे जहाँ से ज़िल्लत में - komal selacoti

रोज़ सारे जहाँ से ज़िल्लत में
ख़्वाब आते रहे जसारत में

मैं कफ़न सर में बाँधता हूँ जो
बाल फूले हैं मेरे हसरत में

इक तसव्वुर में मेरे मैं और तुम
करते हैं तू तड़ाक उल्फ़त में

इसलिए मौत ने मुझे छोड़ा
मर चुका हूँ मैं तो नदामत में

रात को नींद में ये मायूसी
देर तक अब टहलती है छत में

- komal selacoti
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