" शॉर्टकट "
हम क्यूँ दौड़ लगाऍं दोस्त
ये सब अपना काम नहीं है
ये भाग-दौड़ फ़क़त ज़िंदगी की है दोस्त
जिसकी मंज़िल मौत है पर
सबको मगर उरूज-ए-तरक़्क़ी
नशात-ए-दहर की तलाश या
दौलत-ओ-शोहरत का
रोज़ बहाना देती रहती है दोस्त
अगर पहुँचना ही है मंज़िल-ए-मौत तलक तो
वक़्त के ऊबड़-खाबड़ रस्ते पे
हम क्यूँ दौड़ लगाऍं दोस्त
हम क्यूँ न आज ऐसा करें कि अब
इस ज़िंदगी के तलवों के नीचे हम
अपने टूटे ख़्वाब बिछा दें
आतिश-ए-अफ़सुर्दगी-ए-दिल से हम
क्यूँ न मलाल की तेग़-ए-आहन निकाल के
इस ज़िंदगी के सीने में घुसा दें
इस सफ़र-ए-मौत के तवील रस्ते को
हम शॉर्टकट बना दें
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