मेरे कमाल से या कि उसके कमाल से - Abhishar Geeta Shukla

मेरे कमाल से या कि उसके कमाल से
जो एक बार आ गया महफ़िल से क्या उठे

ग़लती से आ गया हूँ मैं प्यादों के बीच में
शतरंज खेलता था मैं रानी के पास से

वो रुकना चाहता तो उसे रोकता मगर
वो जाना चाहता था सो जाने दिया उसे

तितली बुला रहा है तू काग़ज़ कि फूल पे
मैं भी बना के देख लूँ ख़ुशबू अगर बने

यूं तो ख़ुदा से ढंग की दुनिया नहीं बनी
कुछ लोग चाहते थे के मुझसे ख़ुदा बने

मैं जा रहा हूँ छोड़ के ये खेल बीच में
दुनिया को जाके बोल दो चलना है तो चले

- Abhishar Geeta Shukla
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