उसके कूचे से बहल के आ गए
हम कहीं से तो बदल के आ गए
जबसे वो इस शहर में शामिल हुआ
हम भी अंदर से महल के आ गए
चाँदनी भी आज उसपे आ गई
बर्फ़ से हम भी पिघल के आ गए
हश्र-ज़ा सा उसका जाना हो गया
दर्द सारे फिर ख़लल के आ गए
एक कोने में पड़े थे बिखरे से
उसको देखा और निकल के आ गए
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