इससे पहले कि मुझे लोग भुलाने लग जाएँ - Prashant Kumar

इससे पहले कि मुझे लोग भुलाने लग जाएँ
ऐ ख़ुदा मुझको समझने में ज़माने लग जाएँ

मैं अगर रोऊँ तो सब लोग चिढ़ाने लग जाएँ
मुस्कुराऊँ तो मिरे ज़ख़्म दुखाने लग जाएँ

भूलकर ज़ुर्म अमीरों के ज़माने वाले
बस्तियाँ 'आम ग़रीबों की जलाने लग जाएँ

शौक़ थोड़ी है हमें कैफ़ियत-ए-दिल का पर
क्या करें लोग अगर ख़ुद ही सुनाने लग जाएँ

इन खिलौने से मरासिम भी बनाएँ तो कब
फूल सी उम्र से हम लोग कमाने लग जाएँ

काँच का अंग तिरा संग-ए-फ़साँ हैं हम भी
ऐसे टकराना समेटें तो ज़माने लग जाएँ

कितना आसान मोहब्बत का फ़साना कहना
सुनने बैठो तो सुनाने में ज़माने लग जाएँ

बड़े बज्जात दिल-ए-सख़्त वो चोटी के लोग
रफ़्ता रफ़्ता मिरे दिल में न समाने लग जाएँ

देख तो आतिश-ए-सय्याल है चढ़ता जोबन
फूल से लोग कहीं हाथ लगाने लग जाएँ

बरपा तूफ़ान है जो मुझसे अगर भिड़ जाए
एक ही रोज़ में फिर होश ठिकाने लग जाएँ

भाई ही भाई के दुश्मन बने बैठे घर में
काम की बात पे दीवार उठाने लग जाएँ

अब तो फ़ुटपाथ पे ही करते गुज़ारा जो है
क्या करें घर में सभी आँख दिखाने लग जाएँ

फूल से हाथ तिरे मैं कोई संग-ए-मक़्तल
यूँ न हो मुझको मिटाने में ज़माने लग जाएँ

जिनको आगे से उठाकर के निवाला दे दूँ
एक दिन मुझको वही लोग मिटाने लग जाएँ

मतलबी दुनिया से तो यार परिंदे अच्छे
जब भी रोऊँ तो मिरा दर्द उठाने लग जाएँ

नीम-ख़्वाबी सी निगाहों से ये ख़्वाबीदा लोग
ख़्वाब में आके मिरे ख़्वाब चुराने लग जाएँ

जो परिंदे कि शिकारी के क़फ़स में पड़े हैं
मुझे देखें तो बहुत आस लगाने लग जाएँ

- Prashant Kumar
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