किसके रहा हिसाब में क्या हमसे जानिए
सब लोग ज़िंदगी का मज़ा हमसे जानिए
गलियों से ताड़ने का मज़ा ख़ुद ही लीजिए
और पास बैठने का मज़ा हमसे जानिए
कोई जहाँ में इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
गर रह गया तो उसकी सज़ा हमसे जानिए
शामिल नहीं हैं क्यूँ वो जनाज़े में आपके
इस मामले में उनकी रज़ा हमसे जानिए
हर साँस देके इश्क़ की क़ीमत चुकाई है
ब्याजों में आशिक़ी का मज़ा हमसे जानिए
रोते हैं धीरे-धीरे बहुत बेख़ुदी में हम
क़िस्तों में ज़िंदगी की सज़ा हमसे जानिए
As you were reading Shayari by Prashant Kumar
our suggestion based on Prashant Kumar
As you were reading undefined Shayari