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सय्यारगाँ की शब में ज़मीं सा दिया तो है  - Afzaal Naveed

सय्यारगाँ की शब में ज़मीं सा दिया तो है
ये ख़ाक अजनबी सही रहने की जा तो है

आवारगी का बोझ था इस ख़ाक पर बहुत
लेकिन हज़ार शुक्र कि हम से उठा तो है

ये अरसा-ए-हयात अगरचे है कम मगर
पाँव किसी मक़ाम पर आ कर रुका तो है

मा'लूम है मुझे कि तमाशा तो कुछ नहीं
लेकिन हुजूम में कहीं तू भी खड़ा तो है

गलियों का शोर-ओ-ग़ुल है मिरे साथ आज भी
वो दिन गुज़र गए मगर आवाज़-ए-पा तो है

वो रहगुज़र महकती है ख़ुश हूँ ये जान कर
गर मैं नहीं तो क्या है कोई दूसरा तो है

ये भी मआल-ए-ख़्वाहिश-ए-दिल है कि आज वो
बादल को देख कर सही छत पर चढ़ा तो है

आ जाएगा 'नवेद' वो इक रोज़ राह पर
अच्छा है अपनी राह से भटका हुआ तो है

- Afzaal Naveed

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