दिल-ए-शिकस्ता हरीफ़-ए-शबाब हो न सका
ये जाम-ए-ज़र्फ़ नवाज़-ए-शराब हो न सका
कुछ ऐसे रहम के क़ाबिल थे इब्तिदा ही से हम
कि उन से भी सितम-ए-बे-हिसाब हो न सका
नज़र न आया कभी शब को उन का जल्वा-ए-रुख़
ये आफ़्ताब कभी माहताब हो न सका
निगाह-ए-फ़ैज़ से महरूम बरतरी मा'लूम
सितारा चमका मगर आफ़्ताब हो न सका
है जाम ख़ाली तो फीकी है चाँदनी कैसी
ये सैल-ए-नूर सितम है शराब हो न सका
ये मय छलक के भी उस हुस्न को पहुँच न सकी
ये फूल घुल के भी उस का शबाब हो न सका
किसी की शोख़-नवाई का होश था किस को
मैं ना-तवाँ तो हरीफ़-ए-ख़िताब हो न सका
हूँ तेरे वस्ल से मायूस इस क़दर गोया
कभी जहाँ में कोई कामयाब हो न सका
वो पूछते हैं तिरे दिल की आरज़ू क्या है
ये ख़्वाब हाए कभी मेरा ख़्वाब हो न सका
तलाश-ए-मा'नी-ए-हस्ती में फ़ल्सफ़ा न ख़िरद
ये राज़ आज तलक बे-हिजाब हो न सका
शराब-ए-इश्क़ में ऐसी कशिश सी थी 'अख़्तर'
कि लाख ज़ब्त किया इज्तिनाब हो न सका
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