अपनों के ही तो ज़ख़्म है किसको ख़बर है ये
मेरी ग़ज़ल ये शाइरी तुमको नज़र है ये
दिल को चुराने वाले मुझे बोलते नहीं
कैसा क़ज़ाक है भला किसका असर है ये
साहिर को चाहिए कि हो खेला कमाल हो
जादूगरी ही इश्क़ है कैसा भँवर है ये
जाँ खेलते थे बाज़ी हाँ बालक क़रीब से
पतझड़ महज़ नसीब में ऐसा शजर है ये
'रंजन' तुम्हारे प्यार में आएगा क्या कोई
दौलत के ज़ोर पर सभी उसका असर है ये
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