कुछ न कुछ दस्तूर आख़िरकार होना चाहिए

  - Nazar Dwivedi

कुछ न कुछ दस्तूर आख़िरकार होना चाहिए
दोस्त दुश्मन जो भी हो ख़ुद्दार होना चाहिए

साहिबे दरबार की शोहरत फ़क़त कुछ रोज़ की
आदमी को साहिबे किरदार होना चाहिए

धूप सर्दी बारिशों से निस्बतें क़ाइम रहें
आते जाते मौसमों से प्यार होना चाहिए

दुश्मनी ख़ुद से करें आएँ मेरे पहलू में वो
यह करिश्मा भी कभी इक बार होना चाहिए

बेच दे हालात के हाथों वो अपने आप को
इस क़दर भी क्यूँ कोई लाचार होना चाहिए

ज़िन्दगी के साथ चलती हैं कई सच्चाईयाँ
क्यूँ कहें हम दस का आधा चार होना चाहिए

सख़्त फ़ितरत आदमी को तोड़ देती है "नज़र "
कुछ न कुछ झुकने को भी तैयार होना चाहिए

  - Nazar Dwivedi

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