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सज़ा ही दी है दुआओं में भी असर दे कर  - Iftikhar Naseem

सज़ा ही दी है दुआओं में भी असर दे कर
ज़बान ले गया मेरी मुझे नज़र दे कर

ख़ुद अपने दिल से मिटा दी है ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़
उड़ा दिया है मगर उस को अपने पर दे कर

निकल पड़े हैं सभी अब पनाह-गाहों से
गुज़र गई है सियह शब ग़म-ए-सहर दे कर

उसे मैं अपनी सफ़ाई में क्या भला कहता
वो पूछता था जो मोहलत भी मुख़्तसर दे कर

पुकारता हूँ कि तन्हा मैं रह गया हूँ 'नसीम'
कहाँ गया है वो मुझ को मिरी ख़बर दे कर

- Iftikhar Naseem

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