लब पर हँसी है ख़्वाब सर-ए-दार इन दिनों

  - Priya omar

लब पर हँसी है ख़्वाब सर-ए-दार इन दिनों
कहते हैं लोग हमको अदाकार इन दिनों

जीने न दे सुकूँ से न ही मरने दे हमें
साथी ग़म-ए-हयात के अफ़्कार इन दिनों

झूठी अना की कैद में उलझे हैं इस क़दर
ख़ुद के वुजूद से हुए दो चार इन दिनों

शोहरत के नाम पर हया को ताक पर रखें
नौ-नस्लें चुन रहीं नए किरदार इन दिनों

बचपन में हम सुकूँ की गुज़रगाह से चले
चाहत रिफ़ाह फ़र्ज़ में मिस्मार इन दिनों

गुमसुम सी ज़ीस्त है किसी दस्तक की मुंतज़िर
जैसे बदन को नफ़्स की दरकार इन दिनों

कैसे तलाशे रंग-ए-वफ़ा उनमें हम 'प्रिया'
आते नज़र वो इश्क़ रियाकार इन दिनों

  - Priya omar

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