कभी चेहरा बदलता है कभी लहजा बदलता है
तरक़्क़ी के लिए बैठा बशर कांधा बदलता है
हज़ारों मुश्किलें आतीं घरौंदे टूट भी जाऍं
वतन पर जान देने का कहाँ जज़्बा बदलता है
नहीं बाज़ार में बिकती न मिलती है विरासत में
तू क्यों तहज़ीब पाने को भला शजरा बदलता है
मुसलसल ज़ुल्म होते हैं ग़रीबों पर यहाँ तो बस
भले सरकार बदले भाग्य कब उनका बदलता है
दर-ओ-दीवार भी इक दिन यक़ीनन बँट ही जाऍंगे
बदल जाए हर इक शय रिश्तों का क़िस्सा बदलता है
रहेगा साथ भी मरके जुदा तुझसे न होगा वो
फ़क़त मर के यहाँ इंसान ये चोला बदलता है
नया है दौर और देखो नया माहौल है सारा
बदल ख़ुद को भी तू चलता हुआ सिक्का बदलता है
बुलंदी पर रहो करती दुआ है बस यही मीना
कभी मग़रूर मत होना समय सबका बदलता है
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