कैसे कहूँ तुम से कि अपनों ने रुलाया है बहुत
मुझ पर लगा के तोहमतें ये दिल दुखाया है बहुत
हर ज़ख़्म दिन पर दिन हुआ है और भी नासूर यूँ
अपनों की इज़्ज़त के लिए इनको छुपाया है बहुत
मत पूछ कब कैसे दुखा दिल और भी ज़्यादा मेरा
मेरे दुखों पर कोई अपना मुस्कुराया है बहुत
तूफ़ान अपने ज़ेहन के ले कागजों पर रात दिन
लिख लिख के मैंने नज़्म ग़ज़लों को मिटाया है बहुत
कितने महीने साल बीते चैन से सोई नहीं
मुझको बुरी यादों ने ख़्वाबों में डराया है बहुत
मेरे लबों ने गर उधारी में तबस्सुम जो लिया
तो क़र्ज़ इन आँखों ने रो रो कर चुकाया है बहुत
सबसे हसीं इक फूल गुलशन से नदारद हो गया
इस हादसे पर बाग़बाँ ने दुख जताया है बहुत
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