सोगवारों से भरी बज़्म सजा रख्खी हैं - Moin Hasan

सोगवारों से भरी बज़्म सजा रख्खी हैं
दिल की दरगाह में कल शाम सिमा रख्खी हैं

जंग में दिल का कोई काम नहीं होता पर
उसने गर्दन मिरे कदमों में झुका रख्खी हैं

देख कर चाँद को आयात पढ़ी लोगो ने
मैंने नज़रे तो तिरी छत पे टिका रख्खी हैं

कौन आगाज़ करे गुफ्तगू का मुश्किल हैं
बीच में दोनों के इक प्लेट अना रख्खी हैं

मोत इक वस्ल का इम्कान हैं मेरे नज़दीक
ये फना हैं तो , फना में ही बका रख्खी हैं

तू न घबरा के क़ज़ा छू नहीं सकती तुझको
उसके होठों पे 'हसन' तेरी शिफा रख्खी हैं

- Moin Hasan
1 Like

More by Moin Hasan

As you were reading Shayari by Moin Hasan

Similar Writers

our suggestion based on Moin Hasan

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari