वो अब बुझाना चाहता हैं फ़ासले की आग - Moin Hasan

वो अब बुझाना चाहता हैं फ़ासले की आग
जिस्से न बुझ सकी थी कभी सामने की आग

मिलता हैं बिल-यकीन खुदा ढूँडने से पर
दिल में जलानी पड़ती हैं वो ढूँडने की आग

तुमको दरख्त कट गए इसका मलाल हैं
हम रो रहे हैं देख कर के घोंसले की आग

हँसना भी एक फन हैं छिपा कर तमाम दुख
समझे नहीं हैं आप मिरे क़हक़हे की आग

साक़ी निगाह-ए-मस्त से पैमाना कर अता
साक़ी बुझा दे अब तो हमारे गले की आग

फूँकेगा कोई पढ़ के वज़ीफ़ा किताब का
रोशन करेगा दिल में कोई तजरिबे की आग

याद - ए - हुसैन आती हैं रोते हैं हम "हसन"
पढ़ता हैं कोई जब भी कभी मरसिए की आग

- Moin Hasan
1 Like

More by Moin Hasan

As you were reading Shayari by Moin Hasan

Similar Writers

our suggestion based on Moin Hasan

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari