इश्क़ दिल का तिलमिलाना मुस्कुराना इश्क़ है
एक दो पल का नही है इक ज़माना इश्क़ है
जान कर भी किस्मतों के खेल मुस्काते हुए
हाथ थामे बस लकीरों को मिलाना इश्क़ है
उस गली से यार की है जो महक आती मेरे
छू मुझे उसका सबा में लौट जाना इश्क़ है
चाहतों के सर पे ये इल्ज़ाम है तो है ग़लत
मार देता है ज़माना और बहाना इश्क़ है
बाँध देता है ज़माना क्यों रिवाज़ों में इसे
कौन कहता है ख़ता है सूफियाना इश्क़ है
ढूँढती हो महफ़िलों में जब किसी को आँख तब
नाम सुनके यार का नज़रें उठाना इश्क़ है
बाँट लेना दो निवाले प्यार से अपनो के साथ
मुफ़लिसी को मुस्कुराकर आज़माना इश्क़ है
सूख जाता जल्द है फिर भी निशानी के लिए
फूल इक छुपके किताबों में छिपाना इश्क़ है
कौन जिस्मों पे मरे जब रूह पे इक नाम हो
बस नज़र का ही यहाँ मिलना मिलाना इश्क़ है
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