सपने जब भी आवा-जाही करते हैं
दुनिया वाले रोका-टोकी करते हैं
ज़िंदा रहने के चक्कर में सारे लोग
मरते दम तक भागा-दौड़ी करते हैं
आप उन्हीं को सच्चा आशिक़ कहिये जो
दिल से दिल की अदला-बदली करते हैं
नूर को पाने की ख़्वाहिश में जब देखो
चाँद-सितारे मारा-मारी करते हैं
अश्क छुपाना भी मुश्किल है आँखों में
बादल मुझसे छीना-झपटी करते हैं
शाम ढले जब अंधियारों को भूख लगे
जुगनू आकर चूल्हा-चौकी करते हैं
रात में जब भी चाँद अकेला होता है
सारे आशिक़ देखा-देखी करते हैं
मेरी आँखों की चौखट पर आने में
आँसू भी अब आना-कानी करते हैं
शे’र नहीं कह लेता जब तक मैं कोई
कोरे काग़ज़ ताका-झांकी करते हैं
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