कहे ये दिल सुबह पढ़ के वही अखबार की बातें - Shubham Seth

कहे ये दिल सुबह पढ़ के वही अखबार की बातें
कहाँ तक अब सुने ये रोज़ की बेकार की बातें

बड़े दिन बाद आया पर वही घर-बार की बातें
चलो दो कश लगायें भूल कर संसार की बातें

शिकारी बन गया सरदार जब अपने ही जंगल का
भला जंगल सुने क्यों ऐसे अब गद्दार की बातें

बिलख कर उन दरख़्तों ने हमें ये बद्दुआएं दीं
मरोगे और होंगीं साँस के व्यापार की बातें

मिला बरसों पुराना यार थोड़ी हिचकिचाहट थी
हमें सूझा नहीं कुछ और बस दो चार की बातें

हमें अच्छे दिनों की आश थी आये नहीं वो दिन
महज़ बातें रहीं आखिर वही सरकार की बातें

अरे छोड़ो हटाओ अब मुहब्बत कौन करता है
बड़े हम ढीठ थे करते रहे सो प्यार की बातें

लुभाते थे उसे बस आज के शायर सो मैंने भी
पढ़ीं तहजीब की ग़ज़लें करीं अफ़्कार की बातें

भुगतना ही पड़ा हर बार ही अंजाम गलती का
नहीं मानी गयी जब भी तजुर्बेकार की बातें

समझ में ही नहीं आया मुझे वो आदमी अब तक
कभी अश्जार की बातें कभी नज्जार की बातें

- Shubham Seth
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Mohabbat Shayari

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