पागलों की तरह ज़िंदगी हो गई
इश्क़ से जो हमें बे-दिली हो गई
आदतन हम नहीं ख़ुश रहेंगे कभी
उनको हम से बिछड़ कर खु़शी हो गई
हम को भी तो कभी प्यार की चाह थी
चाह बढ़ती रही शाइरी हो गई
यूँ बदल से गए हम जो क्या ही कहें
दोस्तों से बहुत दुश्मनी हो गई
दोपहर को कभी याद आते नहीं
रात तो याद में सुरमई हो गई
जब तलक साथ थी कुछ अलग बात थी
वो गई दूर तो की़मती हो गई
बढ़ रहे थे कदम जो उसी की तरफ
वो नहीं जो मिली बेरुखी हो गई
खो दिया फिर उसे अब कहाँ वो मिले
कल मिली जो सनम बावली हो गई
हम अदब से मिले और वो बे-अदब
हम गले जो मिले वो दुखी हो गई
शाम की बात थी रात भर जो चली
इक छुवन से ही वापस कली हो गई
आज मुझको नहीं कोई भी तजरबा
हाँ मगर राज बे-पर्दगी हो गई
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