साँसें हैं, ज़िन्दगी तो है, ज़िंदा-दिली नहीं,
इस दीप में धुआँ है बस अब, रौशनी नहीं।
उनकी कहानियों में हमेशा बुरा था मैं,
मेरी में उन से अच्छा कोई शख़्स ही नहीं।
अब वक्त ने बदल ली है करवट तो क्या करें,
वरना वो आश्ना थे कभी, अजनबी नहीं।
या तो बना के अपना रखो या रिहा करो,
ये क्या की हमसे इश्क़ कभी है कभी नहीं।
खोया था इस क़दर मैं ख़यालों में पिछली शब,
वो आ के जा चुके मुझे एहसास भी नहीं।
ये तो कहा था उसने कि गौहर हो तुम मगर,
ये भी कहा था साथ में कि क़ीमती नहीं।
उनसे बिछड़ते वक्त ये मालूम था मुझे,
पहला मक़ाम था ये मिरा आख़री नहीं।
मैं जब गया था उसको मनाने के वास्ते,
उसने कहा ये हिज्र है नाराज़गी नहीं।
कुछ लोग टूटते हैं तो सजदों में गिरते हैं,
हर शख़्स मय-कशी ही करे, लाज़मी नहीं।
यूँ तो मिरी मज़ार पे आए थे सब मगर,
जिसके लिए मरे थे हम आया वही नहीं।
उनसे कल आ रही थी किसी और की महक,
और वो महक कुछ और ही थी दोस्ती नहीं।
मेरे बग़ैर ख़ुश थी वो किसने ये कह दिया,
ऐसा ही था अगर तो वो फिर लौटती नहीं।
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