हाल-ए-दिल क्यों न तुझे आज सुनाएँ ये बता
क्यों भला इश्क़ के जज़्बे को दबाएँ ये बता
हम तो इस जुर्म-ए-मोहब्बत में जले जाते हैं
इसकी अब हमको तू क्या देगा सज़ाएँ ये बता
सब तो ज़ाहिर हुए जाता है मेरे चेहरे से
राज़-ए-उल्फ़त को भला कैसे छुपाएँ ये बता
दिल की बस्ती को तेरे आने पे रौशन कर दें
या तेरे जाने पे हम इसको जलाएँ ये बता
तेरे पैरों में झनकती हुई पायल बांधे
या तेरे माथे पे इक बोसा सजाएँ ये बता
तेरी आँखों के समुंदर में कहीं डूब चलें
या तेरे कदमों पे तारों को बिछाएँ ये बता
तुझसे आँखों को मिलाते हुए इज़हार करें
या कि इज़हार में नज़रों को झुकाएँ ये बता
हम किसी और सफ़र का कहीं आगाज़ करें
या तेरे साथ ही अब शहर बसाएँ ये बता
हमको घायल किया लहजे ने कभी नज़रों ने
ये अदाएँ हैं तेरी या हैं जफ़ाएँ ये बता
कुछ उसूलों पे टिका होता है रिश्तों का शजर
अब यही चीज़ तुझे कैसे सिखाएँ ये बता
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