ये कौन है आँखों का ये धोखा है के तू है
तस्वीर में कोई तेरे जैसा है के तू है
मुड़ मुड़ के जिसे राह में तक़ता हूँ मैं हर दम
वो कौन है बीता वो ज़माना है के तू है
जो बाम-ए-फ़लक पर कहीं रौशन है वही शय
मेहताब है क्या है कोई तारा है के तू है
चेहरे पे शिकन है मेरे मैं सोच रहा हूँ
ये शेर महज़ लफ़्ज़ों का मेला है के तू है
सहरा में कहीं दूर झलकता है जो चेहरा
वो थक के मुसाफ़िर कोई बैठा है के तू है
खोने को मेरे पास न था कुछ तो मैं ख़ुश था
पर अब मुझे ये खौफ़ सताता है के तू है
मैं राह में तन्हा हूँ मगर फिर भी न जाने
जब बाद-ए-सबा चलती है लगता है के तू है
जब धूप में जलते हुए तन को मिली राहत
सोचा किसी बादल का ये साया है के तू है
आँखों की चमक देख के ये सोच रहा हूँ
आँखों में मेरी ख़्वाब समाया है के तू है
ये कौन है किसने है लगाई मेरी बोली
आखिर ये ख़रीदार ज़ुलेख़ा है के तू है
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