दिल ही दिल को समझाता है
दिल ही दिल को फुसलाता है
हद से गर ये बढ़ जाए तो
फिर ये आदत बन जाता है
दौलत शौहरत रास न आए
जब ये नस में चढ़ जाता है
दिल न लगाएँ कह दो सबसे
दिल का लगाया मर जाता है
दर्द-ए-दिल को चारागर भी
ठीक नहीं फिर कर पाता है
इश्क़ बड़ी इक बीमारी है
इश्क़ बड़ा ही तड़पाता है
आसाँ नईं है जीना सलमा
जीने वाला मर जाता है
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