हरा भरा है ग़म तेरा ये इश्क़ की मिसाल है
कमाल है कमाल है, कमाल है कमाल है
जगह जगह ख़ुमारियाँ हैं इश्क़ की निशानियाँ
तुम्हारे जुल्फ़ की घटा में फैलता जमाल है
गुज़र गये गुज़र गये कई बरस ख़याल में
ख़बर नहीं ये हो सकी लगा ये कौन साल है
वो ग़म भुला दिया गया जो काम का न था मेरे
तेरा ही ग़म बचा है क्यों यहीं बड़ा सवाल है
झुका रहा ये दिल मेरा तेरी ही जुस्तजू लिये
उलझ गई है ज़िन्दगी ये किस जनम का जाल है
जो इश्क़ में फ़ना हुए मिटी हज़ार ख़्वाहिशें
फ़क़त ही नाम हो गया तुम्हारा ये कमाल है
कहाँ 'उमेश' था कोई कहाँ थी उसकी शाइरी
जो तुम मिली तो हो गई ग़ज़ल ये बेमिसाल है
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