क़ैस ने माना कि सहरा देखा है
आग का हमने भी दरिया देखा है
आमद-ओ-शुद, सा'अत-ए- हिज्र-ओ-विसाल
मेरी इन आँखों ने क्या क्या देखा है
दुःख किसी का कोई कैसे समझे जब
सब ने बस अपना ही अपना देखा है
यूँ नहीं होता किसी का कोई भी
ख़ुद को जैसे तेरा होता देखा है
मैंने अपने दिल को सीने में नहीं
ग़ैर के पहलू में धड़का देखा है
रंज, धोखे सब मिले तेरे सबब
मैंने हरदम ख़ुद को तन्हा देखा है
ज़ब्त का दावा था जिनको इश्क़ में
आज मैंने उन को रोता देखा है
मुझसे मिलने आए हैं वो मेरे घर
फ़ैज़ मैंने कैसा सपना देखा है
Read Full