मुहब्बत में कोई आशिक़ अगर फ़नकार बन जाए
तो फिर ये ऐन मुमकिन है कि दिल बाज़ार बन जाए
तिरी राहें तिरा कूचा अगर घर बार बन जाए
तिरी हसरत में जो मर जाए वो मेमार बन जाए
वो साहिर जो बना देता है पत्थर सब दिवानों को
है मुमकिन उस की लाठी भी कभी तलवार बन जाए
ज़रा सी देर बस आ जा मिरे दीदार की ख़ातिर
कहीं ऐसा न हो ये जिस्म भी मुर्दार बन जाए
मुझे कुछ भी नहीं कहना फ़क़त ख़ामोश रहना है
न जाने कब मिरे हाथों कोई शहकार बन जाए
फ़ना हो जाएँगे इक रोज़ दुनिया के सभी ज़ालिम
हमारा इक मुजाहिद सा अगर क़िरदार बन जाए
ख़ुदारा 'फ़ैज़' को इतनी नहीं दौलत अता करना
कहीं ऐसा न हो भाई मिरा ग़द्दार बन जाए
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