Afzal Parvez

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Afzal Parvez shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Afzal Parvez's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
लैला सर-ब-गरेबाँ है मजनूँ सा आशिक़-ए-ज़ार कहाँ
हीर दुहाई देती है राँझे सा यार-ए-ग़ार कहाँ

अपना ख़ून-ए-जिगर पीते हैं तुझ को दुआएँ देते हैं
तेरे मयख़ाने में साक़ी हम सा बादा-ख़्वार कहाँ

हिज्र का ज़ुल्म हमारी क़िस्मत वस्ल की दौलत ग़ैर का माल
ज़ख़्म किसे और मरहम किस को दर्द कहाँ है क़रार कहाँ

हिज्र का ज़ुल्म हमारी क़िस्मत वस्ल की दौलत ग़ैर का माल
ज़ख़्म किसे और मरहम किस को दर्द कहाँ है क़रार कहाँ

पीर-ए-मुग़ाँ क्या कम था मोहतसिबों का भी अब दख़्ल हुआ
मीना पर क्या गुज़रेगी सर फोड़ेंगे मय-ख़्वार कहाँ

सुनते हैं कि चमन महके बुलबुल चहके बन लहके हैं
अपने नशेमन तक जो न पहुँची ऐसी बहार बहार कहाँ

कुंज-ए-मेहन है दार-ओ-रसन है ज़ुल्मत है तन्हाई है
कौन सी जा है हम-सफ़रो ले आई तलाश-ए-यार कहाँ

गुल-चीनों को आज चमन-बंदी का दा'वा है 'परवेज़'
अब देखें लुट कर बिकता है कली कली का सिंघार कहाँ
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Afzal Parvez
वक़्त के तूफ़ानी सागर में क्रोध कपट के रेले हैं
लेकिन आस के माँझी हर लहज़ा मौजों से खेले हैं

पग पग काँटे मंज़िलों सहरा कोसों जंगल बेले हैं
सफ़र-ए-ज़ीस्त कठिन है यारो राह में लाख झमेले हैं

अलख जमाए धूनी रमाए ध्यान लगाए रहते हैं
प्यार हमारा मस्लक है हम प्रेम-गुरु के चेले हैं

राहज़नों से घबरा कर सब साथी संगत छोड़ गए
और पुर-ख़ौफ़ डगर पर गर्म-ए-सफ़र हम आज अकेले हैं

हुस्न की दौलत उस की है और वस्ल की इशरत भी उस की
जिस ने पल पल हिज्र में काटा जौर सहे दुख झेले हैं

बाज़ीगाह-ए-दार-ओ-रसन में मय-कदा-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न में
हम रिंदों से रौनक़ है हम दरवेशों से मेले हैं

जीवन की कोमल अबला का स्वयंवर रचने वाला है
आओ सला-ए-आम है सब को जितने भी अलबेले हैं
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ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं
हम तो शहर के शोर में शब-भर अपनी जान को रोते हैं

किस किस दर्द को अपनाएँ और किस किस ज़ख़्म को सहलाएँ
देखती आँखों क़दम क़दम पर कई हवादिस होते हैं

दिल की दिल्ली लुट गई इस के ऐवानों में ग़दर मची
ख़ुद्दारी के मुग़ल शहज़ादे शहर में ठल्या ढोते हैं

ख़ुश-लहनों के लिए गुलशन भी कुंज-ए-क़फ़स बन जाए तो
जब्र के गुन गाते हैं या नग़्मों में दर्द समोते हैं

शाम ने दिन का साथ छुड़ाया रात ने दश्त में आन लिया
ऐसे सफ़र में रहगीरों पर साँस भी दूभर होते हैं

मैं तो अपनी जान पे खेल के प्यार की बाज़ी जीत गया
क़ातिल हार गए जो अब तक ख़ून के छींटे धोते हैं

दिल के ज़ियाँ का सबब क्या पूछो उन तूफ़ानों को देखो
जिन के भँवर साहिल के सफ़ीनों को भी आन डुबोते हैं

'परवेज़' आज नहीं मिलती है ख़ुम के भाव तलछट भी
इस पर तुर्रा ये है कि साक़ी नश्तर-ए-ता'न चुभोते हैं
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Afzal Parvez
गर्द उड़े या कोई आँधी ही चले
ये उमस तो किसी उनवान टले

अंग पर ज़ख़्म लिए ख़ाक मले
आन बैठे हैं तिरे महल तले

अपना घर शहर-ए-ख़मोशाँ सा है
कौन आएगा यहाँ शाम ढले

दिल-ए-परवाना पे क्या गुज़रेगी
जब तलक धूप बुझे शम्अ' जले

रूप की जोत है काला जादू
इक छलावा कि फ़रिश्तों को छले

दलदलों में भी कँवल खिलते हैं
नख़्ल-ए-उम्मीद बहर-तौर भले

अपने ही रैन-बसेरों की तरफ़
लौट आए हैं सभी शाम ढले

मय-कदे में तो नशा बटता है
कौन याँ जाँचे बुरे और भले

रौशनी देख के चुँधिया जाएँ
जो अँधेरों में बढ़े और पले

ख़ार तो सैफ़ बनेगा गुल की
ये भले ही किसी गुलचीं को खले

रात बाक़ी है अभी तो 'परवेज़'
बादा सर-जोश रहे दौर चले
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