Ahmad Iftikhar khatak

Ahmad Iftikhar khatak

@ahmad-iftikhar-khatak

Ahmad Iftikhar khatak shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahmad Iftikhar khatak's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
मिरा हम-सफ़र कभी वहम था कभी ख़्वाब था कभी क्या रहा
मैं अजीब हाल में मस्त था सो मिरा मज़ाक़ बना रहा

मिरी मुश्किलों ने अयाँ किया मिरा यार दोस्त कोई नहीं
सो क़बील-ए-हिर्स-ओ-हवास में मैं अकेला डट के खड़ा रहा

मिरे आशियाँ को जला गईं मिरे ख़ाम सोच की हिद्दतें
मिरा सर हया से न उठ सका मैं नदामतों में पड़ा रहा

तुझे फ़ख़्र था तिरे हुस्न पर मुझे ज़ो'म था मिरे इश्क़ का
तू पड़ी रही किसी सेज पर मैं भी गर्द-ए-राह बना रहा

तिरे लम्स लम्स से जी उठा मिरे सर्द जिस्म का रोम रोम
तू मिरी गली से चली गई मैं तिरी गली में पड़ा रहा

मिरे बाग़-ए-दिल पे ख़िज़ाँ रही मिरी शाख़ शाख़ उजड़ गई
मिरे पाँव ख़ून से तर-ब-तर मिरा ज़ख़्म यूँ भी हरा रहा
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Ahmad Iftikhar khatak
ख़्वाब तो खुलते थे मुझ पर दर कोई खुलता न था
आसमाँ सब खुल चुके थे पर कोई खुलता न था

सामने से सारे मंज़र साफ़ दिखते थे मगर
एक मंज़र ऐसा कि अंदर कोई खुलता न था

जाने कैसे शहर में अपने क़दम पड़ने लगे
बंद दिल के लोग थे खुल कर कोई खुलता न था

गू-मगू के दिन थे वो मस्जिद कोई चलती न थी
ख़ौफ़ की देवी का डर मंदिर कोई खुलता न था

अब जिधर से भी मैं गुज़रूँ देखते हैं मुझ को लोग
मुझ पे ऐसे दिन भी गुज़रे दर कोई खुलता न था

देखता रहता था शब भर आसमानों की तरफ़
दीदा-ए-ख़ूँ-बार से मंज़र कोई खुलता न था

मिल ही जाना था मुझे अपने लहू का भी सुराग़
बद-नसीबी थी मिरी ख़ंजर कोई खुलता न था

ख़्वाब देखा आरज़ू-ए-शहर में वो 'इफ़्तिख़ार'
सब गुज़रते थे मगर मुझ पर कोई खुलता न था
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Ahmad Iftikhar khatak
फ़ाएदा है या ख़सारा हम को सब मा'लूम है
क्यों करें हम इस्तिख़ारा हम को सब मा'लूम है

लोग क्यों ख़ुद को बताते हैं हमारा ख़ैर-ख़्वाह
कौन है कितना हमारा हम को सब मा'लूम है

किस के घर में तीरगी का राज था कल रात को
चाँद किस के घर उतारा हम को सब मा'लूम है

ज़िंदगी है नाम जिस का ज़िंदगी हरगिज़ नहीं
कर रहे हैं सब गुज़ारा हम को सब मा'लूम है

सौ समुंदर आँख में तो सौ किनारे हाथ पर
क्या समुंदर क्या किनारा हम को सब मा'लूम है

क्या खुली है काएनाती रम्ज़ की सच्ची किताब
क्या हुआ है आश्कारा हम को सब मा'लूम है

जान दे कर ही बचाया हम ने इस दस्तार को
फिर उठा है सर हमारा हम को सब मा'लूम है

अपनी आदत से तो वाक़िफ़ ही नहीं अब तक ये लोग
लौट आएँगे दोबारा हम को सब मा'लूम है

चाँद ज़र्रा है हमारी ही ज़मीं का 'इफ़्तिख़ार'
आसमाँ है इक सितारा हम को सब मा'लूम है
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