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मेरे माथे पे लिखो बख़्त से हारा हुआ है  - Ahmad Iftikhar khatak

मेरे माथे पे लिखो बख़्त से हारा हुआ है
इक ज़बरदस्त ज़बरदस्त से हारा हुआ है

हारते हारते सब हार गया इश्क़ में मैं
सब समझते हैं मगर दश्त से हारा हुआ है

देखना चाहता है पेड़ पे फलते हुए फूल
एक पत्ता जो तिरे तख़्त से हारा हुआ है

अब जो हिज्राँ में मुझे देता है तावीलें बहुत
ज़ेहन वो जो दिल-ए-कम-बख़्त से हारा हुआ है

दश्त-ए-इम्कान खुला मुझ पे तो मा'लूम पड़ा
हर कोई दिल के दर-ओ-बस्त से हारा हुआ है

मैं समझता हूँ ज़माने का इशारा 'अहमद'
और यहाँ कौन है जो दश्त से हारा हुआ है

- Ahmad Iftikhar khatak

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