Amjad Najmi

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Amjad Najmi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Amjad Najmi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
नहीं कुछ इंतिहा अफ़्सुर्दगी की
यही है रस्म शायद आशिक़ी की

लब-ए-लालीं पे ये लहरें हँसी की
यही डूबे न कश्ती ज़िंदगी की

ढले आँसू कि ये टूटे सितारे
सुकूत शब में याद आई किसी की

चमन में बूटा बूटा देखता है
अदाएँ इन की मस्ताना रवी की

बढ़ाए जा क़दम ज़ौक़ तलब में
शिकायत कर न इज्ज़-ओ-ख़स्तगी की

इसी का नाम शायद ज़िंदगी है
ख़ुशी की इक घड़ी तो इक ग़मी की

सुकून-ए-साहिल-ए-दरिया का अरमाँ
करो बातें न ये कम-हिम्मती की

मिला कर आँख फिर आँखें चुराना
अदा-ए-ख़ास है ये दिलबरी की

अता हो तो अता हो दर्द ऐसा
हो लज़्ज़त जिस में सोज़-ए-दाइमी की

अभी है नूर-ओ-ज़ुल्मत की कशाकश
अभी है दूर मंज़िल आगही की

हयात-ए-चंद-रोज़ा अपनी 'नजमी'
है तस्वीर-ए-मुजस्सम बेबसी की
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Amjad Najmi
जो पूछते हैं कि ये इश्क़-ओ-आशिक़ी क्या है
वो जानते नहीं मक़्सूद-ए-ज़िंदगी क्या है

ज़मीर-ए-पाक ख़याल-ए-बुलंद ज़ौक़-ए-लतीफ़
बस और इस के सिवा जौहर-ए-ख़ुदी क्या है

वफ़ा की आड़ में क्या क्या हुई जफ़ा हम पर
जो दोस्ती यही ठहरी तो दुश्मनी क्या है

बजा है फ़र्त-ए-जुनूँ ने हमें किया रुस्वा
जमाल-ए-यार में आख़िर ये दिलकशी क्या है

वुफ़ूर-ए-शौक़ की मायूसियाँ अरे तौबा
दिल-ए-तबाह में अब आरज़ू रही क्या है

अगर न जुर्म-ए-मोहब्बत की ये सज़ा होती
तो बात बात पे हम से ये बे-रुख़ी क्या है

न समझो तुम मिरी अर्ज़-ए-नियाज़ को शिकवा
मैं जानता हूँ तक़ाज़ा-ए-बंदगी क्या है

अता किया था जो ज़ौक़-ए-नुमूद उस दिल को
तो हर क़दम पे ये रंग-ए-शिकस्तगी क्या है

गुरेज़ क्या मैं करूँ नासेहो की सोहबत से
जहाँ न कुछ हो ये सोहबत वहाँ बुरी क्या है

वफ़ा से और न तर्क-ए-वफ़ा से आप हैं ख़ुश
मुझे बताइए फिर आप की ख़ुशी क्या है

फ़रेब-ए-हस्ती-ए-मौहूम खा रहा हूँ हनूज़
मुझे ख़बर है हक़ीक़त यहाँ मिरी क्या है

जो गामज़न हैं सर-ए-जादा-ए-तलब 'नजमी'
वो जानते नहीं दुनिया में बेबसी क्या है
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Amjad Najmi
न कुछ आलिम समझते हैं न कुछ जाहिल समझते हैं
मोहब्बत की हक़ीक़त को बस अहल-ए-दिल समझते हैं

निशान-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद पा कर भी न जो ठहरे
उसी रहरव को हम आसूदा-ए-मंज़िल समझते हैं

तिरे सहरा-नवर्दों का मज़ाक़-ए-जुस्तुजू तौबा
ग़ुबार-ए-राह को ये पर्दा-ए-महमिल समझते हैं

तुम्हीं से है ये नूर-ए-शम्अ' और ये सोज़-ए-परवाना
तुम्हीं को अहल-ए-महफ़िल रौनक़-ए-महफ़िल समझते हैं

न दुनिया बाइ'स-ए-ग़फ़लत न उक़्बा वज्ह-ए-हुश्यारी
रहे जो तुझ से ग़ाफ़िल हम उसे ग़ाफ़िल समझते हैं

यहाँ तो क़ाब़िल-ए-अफ़सोस हैं दुश्वारियाँ उन की
तुम्हारी राह में मुश्किल को जो मुश्किल समझते हैं

उन्हीं को तेरे तीर-ए-नीम-कश का लुत्फ़ आता है
न सीने को जो सीना और न दिल को दिल समझते हैं

गुल-ए-मक़्सूद से फिर क्यूँ उसे वो भर नहीं देते
मिरे दामन को जब वो कासा-ए-साइल समझते हैं

कोई समझे न समझे इस हक़ीक़त को मगर 'नजमी'
हम अपने दर्द-ए-दिल को इश्क़ का हासिल समझते हैं
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Amjad Najmi
तुम जल्वा दिखाओ तो ज़रा पर्दा-ए-दर से
हम थक गए नज़्ज़ारा-ए-ख़ुरशीद-ओ-क़मर से

मजबूर-ए-नुमाइश नहीं कुछ हुस्न ही उन का
हम भी तो हैं मजबूर तक़ाज़ा-ए-नज़र से

बछड़ा हुआ जैसे कोई मिलते ही लिपट जाए
यूँ तीर तिरा आ के लिपटता है जिगर से

कटते नहीं क्यूँ शाम-ए-जुदाई के ये लम्हे
मिलती नहीं क्यूँ ज़ुल्मत-ए-शब जा के सहर से

करना है किसी दिन उसे हम-दोश-ए-सुरय्या
है आह अभी तक मिरी महरूम असर से

हो जाएँ हमेशा के लिए आप जो मेरे
मैं माँग लूँ कुछ उम्र यहाँ उम्र-ए-ख़िज़र से

ऐसा तो न कर पाएगा कोई भी फ़ुसूँ-कार
वो कर गए जो सादगी-ए-हुस्न-ए-नज़र से

आसूदा-ए-मंज़िल नहीं आगाह-ए-सऊबत
महरूम है वो लज़्ज़त-ए-दूरी-ए-सफ़र से
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Amjad Najmi
आशुफ़्ता-नवाई से अपनी दुनिया को जगाता जाता हूँ
दीवाना हूँ दीवानों को मैं होश में लाता जाता हूँ

उम्मीद की शमएँ रह रह कर मैं दिल में जलाता जाता हूँ
जब जल चुकती हैं ये शमएँ फिर सब को बुझाता जाता हूँ

तुम देख रहे हो मयख़ाने में जुरअत-ए-रिंदाना मेरी
मैं ख़ुद भी पीता जाता हूँ तुम को भी पिलाता जाता हूँ

तकमील-ए-मोहब्बत करता हूँ कुछ गर्मी से कुछ नर्मी से
आहें भी भरता जाता हूँ आँसू भी बहाता जाता हूँ

बे-कार सही नाले मेरे बे-सूद सही आहें मेरी
मैं उन की निगाहों में लेकिन फिर भी तो समाता जाता हूँ

हाँ साज़-ए-शिकस्ता में मेरे नग़्मों का तलातुम पिन्हाँ है
शोरीदा-नवाई से अपनी महफ़िल पर छाता जाता हूँ

मैं सई-ए-मुसलसल कर के भी मंज़िल से कोसों दूर रहा
मंज़िल न मिली तो क्या है मगर अपने को पाता जाता हूँ

उम्मीद-ए-वफ़ा के पेश-ए-नज़र मैं उन की जफ़ाएँ भूल गया
है मुस्तक़बिल पर आँख मिरी माज़ी को भुलाता जाता हूँ

क़ुदरत भी मुहय्या करती है अब मेरे लिए इबरत के सबक़
हर गाम पे ठोकर खाता हूँ और होश में आता जाता हूँ

'नजमी' ये ख़मोशी भी मेरी कुछ वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न हुई
मैं ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ से दर्द को अपने और बढ़ाता जाता हूँ
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Amjad Najmi
मुझे दैर भी हो क्यूँ कर न हरम की तरह प्यारा
तू यहाँ भी जल्वा-आरा तू वहाँ भी जल्वा-आरा

है अजीब ये तमाशा है अजीब ये नज़ारा
मिरी आहों का शरारा मिरे आँसुओं का धारा

वो पयाम-ए-शाम-ए-ग़म हो कि नवेद-ए-सुब्ह-ए-इशरत
मुझे ये भी है गवारा मुझे वो भी है गवारा

यूँही मुझ को डूबने दो इन्हीं मौज-हा-ए-ग़म में
कि मुहीत-ए-ग़म का शायद अभी दूर है किनारा

न फ़रोग़-ए-रू-ए-ताबाँ न निगाह-ए-नूर-अफ़्शाँ
मिरे इज़्तिराब-ए-दिल से मिरा राज़ आश्कारा

कोई क्या समझ सकेगा ये है फ़ैज़-ए-इश्क़ जिस ने
मुझे इस तरह बिगाड़ा मुझे इस तरह सँवारा

कोई चीज़ भी है क़िस्मत कोई शय भी है मुक़द्दर
कि मैं अपनी कोशिशों में यहाँ बार-बार हारा

ये हुजूम-ए-ना-उमीदी ये वुफ़ूर-ए-ना-मुरादी
हूँ अजब मुसीबतों में मैं मुसीबतों का मारा

मुझे इल्म इस का क्या था मुझे क्या ख़बर थी 'नजमी'
कि मुझी को फूँक देगा मिरे इश्क़ का शरारा
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Amjad Najmi
सुब्ह-दम आया तो क्या हंगाम-ए-शाम आया तो क्या
तू मिरी नाकामियों के बा'द काम आया तो क्या

इल्तिफ़ात-ए-अव्वलीं की बात ही कुछ और है
मुझ तक उन की बज़्म में अब दौर-ए-जाम आया तो क्या

ताक़त-ए-नज़्ज़ारा जब मिन्नत-पज़ीर-ए-होश हो
बहर-जल्वा फिर कोई बाला-ए-बाम आया तो क्या

शोरिश-ए-हंगामा-ए-मंसूर की तज्दीद है
क़त्ल को मेरे वो बा-ईं एहतिमाम आया तो क्या

अब कहाँ वो फ़स्ल-ए-गुल और अब कहाँ जोश-ए-बहार
बहर-ए-गुल-गश्त-ए-चमन वो ख़ुश-ख़िराम आया तो क्या

ऐ हुजूम-ए-ना-मुरादी ऐ वुफ़ूर-ए-यास-ओ-ग़म
इश्क़ में कुछ लुत्फ़-ए-सई-ए-ना-तमाम आया तो क्या

जब गरेबाँ में हमारे तार तक बाक़ी नहीं
फिर अगर सुब्ह-ए-बहाराँ का पयाम आया तो क्या

आरज़ू-ए-दिल अभी तक तिश्ना-ए-तफ़्सीर है
तुझ को 'नजमी' शेवा-ए-हुस्न-ए-कलाम आया तो क्या
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