Anees Qalb

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Anees Qalb shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Anees Qalb's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
ना-आश्ना गर मुझ से मिरे यार न होते
हालात से हम ऐसे तो बेज़ार न होते

इस तरह मुझे आप ने छोड़ा नहीं होता
दामन में मिरे फूल थे ये ख़ार न होते

होते न ज़ुलेख़ा से ख़रीदार तो शायद
यूसुफ़ के लिए मिस्र के बाज़ार न होते

कर देता अगर हम पे इनायत की नज़र तू
फिर तेरी नज़र के ही तलबगार न होते

खलते न मुझे शाम-ओ-सहर के ये उजाले
जो जुर्म-ए-मोहब्बत के सज़ा-वार न होते

फिर इश्क़ में करता न मैं एहसास-ए-नदामत
तुम जैसे भी होते प जफ़ा-कार न होते

हम को भी कहाँ शौक़ था मय-ख़्वारी का साक़ी
गर इश्क़ न होता तो यूँ मय-ख़्वार न होते

हर ख़्वाब की ता'बीर ही हो जाती मुकम्मल
हम काश तिरे इश्क़ में बेदार न होते

अफ़्सुर्दा सा दरिया था तो क्या चाहते साहिल
हम वो थे शनावर जो कभी पार न होते

होते न सदफ़ 'क़ल्ब' तिरी आँख के ख़ाली
पलकों पे अगर अब्र-ए-गुहर-बार न होते
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मुसीबत आई है तो फिर मुसीबत से न घबराना
दिए का काम है आख़िर सवेरे तक जले जाना

गुज़ारी हिज्र की रातें तुम्हारी याद में अक्सर
कभी जो मिलने आ जाओ बहल जाएगा दीवाना

नहीं है रश्क मुझ को तो हवेली और दौलत का
मैं मिट्टी का हूँ पैकर और इसी में मुझ को मिल जाना

जुनूँ में रक़्स करते ही फ़ना हो जाएगा आख़िर
क़रीब-ए-शम्अ आया है वो देखो एक परवाना

न सहरा में न दरिया में न जंगल में बयाबाँ में
कहाँ पर आ गया हूँ मैं ज़रा ये मुझ को समझाना

मैं आवारा सा इक लड़का मआशी फ़िक्र में उलझा
यही है दास्ताँ मेरी यही है मेरा अफ़्साना

जहाँ महबूब हो तुम 'क़ल्ब' सज्दा उस जगह रखना
हरम हो दैर हो चाहे कलीसा हो या बुत-ख़ाना
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इश्क़ में डूबा तो फिर मैं न दोबारा निकला
ये वो दरिया था कि जिस का न किनारा निकला

इक फ़क़त तुझ से ही उम्मीद-ए-फ़रामोशी थी
तुझ से ऐ दिल न मगर काम हमारा निकला

जान-ओ-दिल पे मिरे बन आई है इस उल्फ़त में
इश्क़ के सौदे में क्यों इतना ख़सारा निकला

ग़म-ए-तूफ़ाँ ने डुबोया है सफ़ीना अपना
इस तलातुम में भी कोई न किनारा निकला

अब दुआ से ही फ़क़त इश्क़ का दरमाँ हो तो हो
चारासाज़ों से न इस का कोई चारा निकला

संग-ए-दिल से तिरी याद आ के जो टकराई थी
चोट पत्थर पे पड़ी और शरारा निकला

मैं तो सहरा में सराबों से बुझाता हूँ प्यास
अब समुंदर भी मिरी प्यास से हारा निकला

कब तलक 'क़ल्ब' ये ग़म यूँही दबाता आख़िर
अश्क जो टपका तो फिर दर्द हमारा निकला
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तुम जो पूछो तो बताऊँ है ये कैसी दुनिया
एक-तरफ़ा सा तमाशा है ये सारी दुनिया

अब तो ख़ूँ-बार नज़र आता है आलम सारा
किस क़दर अब है उजड़ती हुई प्यारी दुनिया

अब ज़माने में है बरपा ये अज़ाब-ए-क़ुदरत
है दहाने पे खड़ी मौत के अपनी दुनिया

एक मुद्दत से था आबाद मिरा गुलशन-ए-दिल
अब तो वीरान ही वीरान है मेरी दुनिया

ख़ूबसूरत से मनाज़िर हैं निगाहों में अब
देख आँखों से मिरी तू ये हमारी दुनिया

है ख़ला आँख समुंदर है कुशादा जैसे
एक आँसू के ही क़तरे में है सिमटी दुनिया

अब तो परवाज़ का दम रखता है ये मुर्ग़-ए-यास
अब क़फ़स में हमें क्या क़ैद करेगी दुनिया

एक मरकज़ पे रवाँ गर्दिश-ए-दौराँ है अभी
और इक महवर-ए-मौहूम पे ठहरी दुनिया

'क़ल्ब' मर कर भी कहानी में रहेगा ज़िंदा
एक दुनिया से परे और मिलेगी दुनिया
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