Banne Miyan Jauhar

Banne Miyan Jauhar

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Banne Miyan Jauhar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Banne Miyan Jauhar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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सुब्ह हुई और अँधेरी भागी
हक़ की ख़िल्क़त सारी जागी
फूलों से सब बाग़ हैं महके
और पखेरू उठ कर चहके
कुकड़ूँ कूँ है मुर्ग़ के लब पर
फज्र हुई कहता है घर घर
झिलमिल झिलमिल कर के तारे
दिल को लुभा लेते थे प्यारे
लेकिन वो बे-चारे सिधारे
जो थे फ़लक पर चाँद सितारे
सुब्ह को जाते रात को आते
अपनी झलक हैं हम को दिखाते
बस यही उन का काम है बच्चो
इन तारों से तुम भी सबक़ लो
जो कुछ भी हैं काम तुम्हारे
मत घबराओ उन के मारे
तुम को भी है यूँ ही चमकना
देखो काम से तुम मत थकना
दुनिया में तुम इज़्ज़त पाना
दौलत पाना शोहरत पाना
काम वो करना नाम हो जिस से
हासिल कुछ इनआ'म हो जिस से
सस्ती ग़फ़्लत छोड़ो भाई
इस से किस ने इज़्ज़त पाई
इल्म का है दुनिया में उजाला
इस से पड़े जब तुम को पाला
मेहनत करना जी को लगाना
आलिम बन कर इज़्ज़त पाना
क़ौम-ओ-वतन की करना ख़िदमत
है यही दौलत है यही राहत
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शाम हुई है सूरज डूबा
रंग ज़माने का है बदला
शाम सुहानी देखो आई
कैसा सुहाना वक़्त है लाई
दिल को लुभा लेता है कैसा
चैन हमें देता है कैसा
शाम का अच्छा अच्छा मंज़र
दिल को लुभाने वाला मंज़र
घर को चला है खेती वाला
मेहनत से सब तन है काला
बैल भी छोड़ा हल भी छोड़ा
घर की जानिब मुँह को मोड़ा
हाँका वो बैलों को अपने
चला वो घर को धीमे धीमे
खेत से अपने घर को सिधारा
लेगा अब आराम बेचारा
बैलों को खूँटों से बाँधा
सामने उन के भूसा डाला
बैठा ख़ुद बच्चों में जा कर
कैसा ख़ुश है उस का घर भर
इधर उधर से चिड़ियाँ उड़ कर
आ बैठीं शाख़ों के ऊपर
अब ये शब भर लेंगी बसेरा
सुब्ह को फिर खेतों का फेरा
झील किनारे आ कर बैठी
दम लेने को हर मुर्ग़ाबी
तुम भी बच्चो खेलना छोड़ो
अपने अपने घर को चल दो
सारा दिन राहत से गुज़रा
'जौहर' शुक्र करो ख़ालिक़ का
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आओ बच्चो सामने बैठो
क़िस्सा एक सुनाऊँ तुम को
जंगल में इक भूक का मारा
लकड़ी लाने गया बेचारा
जंगल में थी नद्दी गहरी
गिर गई बेचारे की कुल्हाड़ी
क्या करूँ दिल में सोच रहा था
इतने में इक आदमी आया
कहने लगा क्यूँ तुम हो फ़सुर्दा
कुछ तो बताओ क्या है सदमा
बोला वो मैं क्या कहूँ भाई
मैं ने कुल्हाड़ी अपनी गँवाई
इस नद्दी ही में वो पड़ी है
हालत मेरी आह बुरी है
नद्दी में तब कूद गया वो
कैसा बहादुर इंसाँ था वो
मिल गई नद्दी में वो कुल्हाड़ी
ग़ोता मारा और निकाली
देखा तो वो सोने की थी
पूछा क्या है यही तुम्हारी
बोला ये नहीं मेरी भाई
डुबकी उस ने और लगाई
अब लोहे की उस ने निकाली
फिर पूछा क्या ये है तुम्हारी
देख के ये ख़ुश हो गया उस को
और कहा हाँ यही थी देखो
ले कर ख़ुश-ख़ुश घर को सिधारा
कितना सच्चा था बेचारा
देख के सोने की वो कुल्हाड़ी
उस की निय्यत ज़रा न बदली
जी में अगर लालच कुछ होता
सोने की हरगिज़ न वो खोता
बुरा है लालच सच है अच्छा
'जौहर' का भी यही है कहना
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तुझ से महका सारा गुलशन
तुझ से बना है प्यारा गुलशन
भीनी भीनी तेरी निकहत
प्यारी प्यारी तेरी रंगत
जंगल में है तुझ से मंगल
जलसों में है तुझ से हलचल
नाज़िश गुलशन तेरी हस्ती
तुझ से है बुलबुल की मस्ती
तेरा दम भरती है बुलबुल
तेरे लिए है फिरती मरती
तेरे लिए ही बन से आई
बाग़ में अपनी बस्ती बसाई
तेरे लिए ही बाग़ में चहकी
तेरे लिए ही भटकी बहकी
बाद-ए-सहर के झोंके से तू
खिल कर फैला देता है बू
जिस दम फैली तेरी ख़ुशबू
दौड़ गई गुलशन से हर सू
शाख़ में कैसा फूल रहा है
कितनी ख़ुशी से झूल रहा है
मस्त हुई है सारी ख़िल्क़त
फैली है तेरी जो निकहत
रंग है तेरा कैसा प्यारा
शाद हुआ हर ग़म का मारा
देखते ही हर ग़मगीं तुझ को
भूला अपने दर्द और दुख को
दुनिया भर का तू है चहीता
शक नहीं इस में कोई असलन
तुझ से महकी सारी ज़मीं है
लेकिन तुझ को नाज़ नहीं है
तुझ को चाहे सारी दुनिया
तेरी है हर दिल में तमन्ना
फूल सिखाता है ये 'जौहर'
ख़ुश रहो तुम भी यूँ ही दिन भर
तुम भी ख़ुश हर एक को रक्खो
मज़ा मोहब्बत का भी चक्खो
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तुम ने क्या देखा है तोता
रंग हरा है प्यारा प्यारा
मुड़ी हुई है चोंच सिरे पर
रंगत उस की लाल है ख़ुश-तर
दुम लम्बी और हरे हरे पर
जाता है हर जा ये उड़ कर
पतली सी टहनी के ऊपर
बैठता है ये तोता चढ़ कर
जहाँ भी है ये आता जाता
उम्दा उम्दा मेवे खाता
इस में हैं गुन प्यारे सारे
सब हैं इस के चाहने वाले
प्यारी बातें हैं ये सुनाता
दिल का सब दुख है ये मिटाता
तुम भी समझ लो ये ऐ लड़को
जो उस्ताद बताए सीखो
काम करो तुम ऐसे प्यारे
घर भर के हो जाओ दुलारे
सारी दुनिया तुम को चाहे
गीत तुम्हारे घर घर गाय
वर्ना तुम्हारी दुर्गत होगी
सब को तुम से नफ़रत होगी
'जौहर' की इस बात को मानो
दोस्त उसे तुम अपना जानो
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तुम ने देखा होगा घोड़ा
क्या सीना उस का है चौड़ा
शक्ल है प्यारी वो है बाँका
काठी अच्छी रंग भी अच्छा
बाल उस की दम और गर्दन के
क्या हैं मुलाएम और चमकीले
गोल क़दम हैं टाँगें पतली
रानें ताक़त-वर और चिपटी
ना'ल अगर हों सुम नहीं घिसते
दौड़ते हैं आराम से घोड़े
सुम हैं सख़्त कुछ ऐसे बच्चो
काटें तो ईज़ा न हो उस को
कान हैं छोटे खड़े नुकीले
दाँत हैं मुँह में आगे पीछे
घास चना बस इस की ग़िज़ा है
चबा चबा कर ये खाता है
तेज़ है इतना दौड़ने वाला
दम कई मीलों में है लेता
अक़्ल समझ अच्छी है इस की
और वफ़ा भी इस में पाई
रखता है ये याद वो रस्ता
इस ने जो इक बार भी देखा
ताबे' अपने मालिक का है
उस के इशारे पर चलता है
रंज में आक़ा को जो है पाता
अपनी जान को भी है खपाता
तुम भी सबक़ लो इस से बच्चो
अपने बड़ों को राज़ी रक्खो
जो कहता है 'जौहर' मानो
इस की बात को झूट न मानो
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है ज़बाँ पर सब की मिदहत इल्म की
क्यों न हो दिल में मोहब्बत इल्म की
क्यों न हो हर इक को चाहत इल्म की
हर किसी को है ज़रूरत इल्म की
इल्म के रुत्बे से वाक़िफ़ है जहाँ
गोशे गोशे में है शोहरत इल्म की
जिस को चसका लग गया है इल्म का
पूछिए उस से हक़ीक़त इल्म की
बस उसी ने पाई इज़्ज़त मुल्क में
दिल से की है जिस ने ख़िदमत इल्म की
सारे दुनिया का चहीता है ये इल्म
रहती है हर दिल में उल्फ़त इल्म की
वो ज़लील-ओ-ख़्वार दुनिया में हुआ
जिस किसी ने की न इज़्ज़त इल्म की
दो जहाँ की उस को ने'मत मिल गई
हो गई जिस पर इनायत इल्म की
सुर्ख़-रू होता है वो इक दिन ज़रूर
रहती है जिस दिल को चाहत इल्म की
तख्त-ए-शाही क्या है मिलता है ख़ुदा
इस से बढ़ कर क्या हो बरकत इल्म की
क्यों किसी के आगे वो फैलाए हाथ
हाथ आई जिस के दौलत इल्म की
है ये कुंजी ऐश और आराम की
क्या बताऊँ क़द्र-ओ-क़ीमत इल्म की
सारी दुनिया पा रही है जिस से फ़ैज़
है हक़ीक़त में वो दौलत इल्म की
जान से इस को समझते हैं अज़ीज़
जिन पे रौशन है हक़ीक़त इल्म की
हो वो बच्चा या हो बूढ़ा या जवान
हर किसी को है ज़रूरत इल्म की
जाओ 'जौहर' हर कहीं बे-ख़ौफ़ तुम
कोई लूटेगा न दौलत इल्म की
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मैं हूँ चहकने वाली बुलबुल
मेरे लिए ही खिलते हैं गुल
गीत सुनाती हूँ फूलों को
गले लगाती हूँ फूलों को
आवाज़ ऐसी सुरीली पाई
मेरी बोली सब को भाई
दम फूलों का भरती हूँ मैं
फूलों पर ही मरती हूँ मैं
मेरे लय हर इक को भाई
ख़ुश है मुझ से सारी ख़ुदाई
शाइ'र हैं मशरिक़ में जितने
गुन गाते हैं सब ही मेरे
ज़ाहिर में हूँ छोटी लेकिन
सारा चमन सूना है मुझ बिन
लड़को तुम तो ख़ुद हो दाना
भेद ये क्या अब तुम को बताना
मेरी सदा दिलकश है जो इतनी
बात बड़ी इस में नहीं कोई
दी है ये ने'मत मुझ को ख़ुदा ने
मोह लिए दिल मेरी सदा ने
कौन ख़ुदा वो सब का मौला
जिस ने इस दुनिया को बनाया
मेंह बरसाया पौदे उगाए
रंग-बिरंगे फूल खिलाए
जिन की भीनी भीनी बू से
जंगल महके गुलशन महके
है वो दो-आलम का रखवाला
कहते हैं जिस को बारी-तआ'ला
हम सब का मालिक वो ख़ुदा है
माँ बाप और भाई से सिवा है
गाती हूँ गीत उस के हर दम
जिस ने बनाया है ये आलम
गीत उसी के तुम भी गाओ
अपने रब को भूल न जाओ
'जौहर' फिर दुनिया है तुम्हारी
सुनता है सब कुछ वो हमारी
फ़ज़्ल ख़ुदा का जब हो जाए
जो माँगे इंसान वो पाए
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