Faisal Azeem

Faisal Azeem

@faisal-azeem

Faisal Azeem shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Faisal Azeem's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

28

Likes

1

Shayari
Audios
  • Ghazal
  • Nazm
गो तार-ए-अंकबूत आया नहीं अब तक गुमानों में
मगर कुछ मकड़ियों की सरसराहट सी है कानों में

ज़मीं-ज़ादों को अब मिट्टी से तो वाबस्ता रहने दो
ख़ुदारा फ़स्ल-ए-नौ का ज़ौक़ रहने दो किसानों में

सरों से आसमाँ भी क्या हटाया जाने वाला है
शबीहें मेहर-ओ-मह की टाँकते हो क्यों मकानों में

ज़रा ठहरो उगेगी भूक भी काग़ज़ के पेड़ों पर
अभी तो हाथ बाँटे जा रहे हैं बाग़बानों में

बहुत मुमकिन है पत्थर के ज़माने के नज़र आओ
अगर पैदा किया जाए तुम्हें पिछले ज़मानों में

न पंजे हैं न पर हैं और न है परवाज़ की ताक़त
जो नग़्मा-संज होना हो तो लुक्नत है ज़बानों में

चला आता है बस्ती में लिए ज़म्बील फ़तवों की
तू ऐसा कर बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
Read Full
Faisal Azeem
भरी है आग जेबों में कफ़-ए-अफ़्सोस मलते हैं
हमारी ही कमाई से हमारे हाथ जलते हैं

मिरे अतराफ़ में ये खींचा-तानी कम नहीं होती
इधर पहलू बदलता हूँ उधर जाले बदलते हैं

किसी को भी वो अंगारा दिखाई ही नहीं देता
इशारे से बताता हूँ तो अपने हाथ जलते हैं

मैं अपने जिस्म से बाहर हूँ या रूहों का मस्कन है
उन्हें मैं छू नहीं पाता जो मेरे साथ चलते हैं

हमारे चाक पर उक़्बा कई शक्लें बदलती है
ये जन्नत और जहन्नुम तो हमारे साथ चलते हैं

नज़र-अंदाज़ करके सब गुज़र जाते हैं मुझ में से
नफ़ी करते हुए मुझ में कई रस्ते निकलते हैं

सदा बन कर बहुत टकराए हैं मीनार-ओ-गुम्बद से
अब आँखें खुल गई हैं तो अँधेरे से निकलते हैं
Read Full
Faisal Azeem
इक हाथ पे आँखें रक्खी हैं इक हाथ पे चेहरा होता है
हर गाम मदारी बैठे हैं हर वक़्त तमाशा होता है

अब कौन यहाँ मज्ज़ूब नहीं बाज़ार में क्या मौजूद नहीं
इरफ़ान की माला बिकती है इल्हाम का सौदा होता है

अपनी ख़ल्वत में ध्यान कहाँ ख़ामोशी है विज्दान कहाँ
इक आँधी ख़ाक उड़ाती है इक आग का दरिया होता है

दिल बहर समान आँखें रौशन पर राहगुज़र भी तो देखो
इक तंग-नज़र की बदली ने अंधेर मचाया होता है

कल झूम के बोली केंचुलि-ए-इल्हाद अक़ीदे के मन से
ऐ रिंद तुझे दो मूँहों ने क्या जाम पिलाया होता है

हर बुत के आगे सज्दे पर ज़िंदीक़ी को मजबूर न कर
ये जेहल-ए-मरातिब आख़िर किस काफ़िर को गवारा होता है

हम लोग पशेमाँ फ़ितरत हैं दीवानों की कब सुनते हैं
आँखों वाले पढ़ सकते हैं दीवार पे लिक्खा होता है
Read Full
Faisal Azeem