Iftikhar Mughal

Iftikhar Mughal

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Iftikhar Mughal shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Iftikhar Mughal's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
कभी कभी तो ये हालत भी की मोहब्बत ने
निढाल कर दिया मुझ को तिरी मोहब्बत ने

तिरी ये पहली मोहब्बत है तुझ को क्या मालूम
घुला दिया मुझे इस आख़िरी मोहब्बत ने

वो यूँ भी ख़ैर से सरमा का चाँद थी लेकिन
उसे उजाल दिया और भी मोहब्बत ने

मुझे ख़ुदा ने अधूरा ही छोड़ना था मगर
मुझे बना दिया इक शख़्स की मोहब्बत ने

ये तुम जो मेरे लिए ख़्वाब छोड़ आई हो
तुम्हें जगाया तो होगा मिरी मोहब्बत ने

मैं जिस को पहले पहल दिल-लगी समझता था
मुझे तो मार दिया इस नई मोहब्बत ने

ये अपने अपने नसीबों की बात है वर्ना
किसी को 'मीर' बनाया इसी मोहब्बत ने

ये जिस्म-ओ-जान ये नाम-ओ-नुमूद हस्ब-ओ-नसब
ये सारे वहम थे इज़्ज़त तो दी मोहब्बत ने

मोहब्बत और इबादत में फ़र्क़ तो है नाँ
सो छीन ली है तिरी दोस्ती मोहब्बत ने
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Iftikhar Mughal
जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद
प तंगनाए-ग़ज़ल में समाए कब तिरी याद

किसी खंडर से गुज़रती हवा का नम! तिरा ग़म!!
शजर पे गिरती हुई बर्फ़ का तरब तिरी याद

तू मुझ से मेरे ज़मानों का पूछती है तो सुन!
तिरा जुनूँ, तिरा सौदा, तिरी तलब, तिरी याद

गुज़र-गहों को उजड़ने नहीं दिया तू ने
कभी यहाँ से गुज़रती थी तू, और अब तिरी याद

ये क़ैद-ए-उम्र तो कटती नज़र नहीं आती!
बस इक क़रीना! तिरा ध्यान, एक ढब! तिरी याद

ब-फ़ैज़-ए-दर्द-ए-मोहब्बत मैं ख़ुश नसब, मैं नजीब!
मिरा क़बीला तिरा ग़म, मिरा नसब तिरी याद

ब-जुज़ हिकायत-ए-तू ईं वजूद-ए-चीज़-ए-नीस्त
मैं कुल का कुल तिरा क़िस्सा मैं सब का सब तिरी याद

दरीं गुमान-कदा कुल्लो-मन-अलैहा-फ़ान
बस इक छलावा मिरा इश्क़, एक छब तिरी याद

बहर सबील-ए-हुनर का सफ़र तो जारी है
कभी कुछ और बहाना, कभू सबब तिरी याद
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Iftikhar Mughal
कोई वजूद है दुनिया में कोई परछाईं
सो हर कोई नहीं होता किसी की परछाईं

मिरे वजूद को मानो तो साथ चलता हूँ
कि मैं तो बन न सकूँगा तुम्हारी परछाईं

यही चराग़ है सब कुछ कि दिल कहें जिस को
अगर ये बुझ गया तो आदमी भी परछाईं

कई दिनों से मिरे साथ साथ चलती है
कोई उदास सी ठंडी सी कोई परछाईं

मैं अपना-आप समझता रहा जिसे ता-उम्र
वो मेरे जैसा हयूला था मेरी परछाईं

न ख़ुश हो कोई भी तेज़ी से बढ़ती क़ामत पर
पस-ए-ग़ुरूब न होगी बिचारी परछाईं

गुमान-ए-हस्त है हस्ती का आईना-ख़ाना
सो अपने-आप को भी जान अपनी परछाईं

मैं निस्फ़ सच की तरह हूँ भी और नहीं भी हूँ
कि आधा जिस्म है मेरा तो आधी परछाईं

फिर उस से उस के तग़ाफ़ुल का क्या गिला करना
कि 'इफ़्तिख़ार-मुग़ल' वो तो थी ही परछाईं
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Iftikhar Mughal
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं

मैं तुम को ख़ुद से जुदा कर के किस तरह देखूँ
कि मैं भी ''तुम'' हूँ, कोई दूसरा नहीं हूँ मैं

तो ये भी तय! कि बिछड़ कर भी लोग जीते हैं
मैं जी रहा हूँ! अगरचे जिया नहीं हूँ मैं

किसी में कोई बड़ा-पन मुझे दिखाई न दे
ख़ुदा का शुक्र कि इतना बड़ा नहीं हूँ मैं

मिरी उठान की हर ईंट मैं ने रक्खी है
मैं ख़ुद बना हूँ! बनाया हुआ नहीं हूँ मैं

यहाँ जो आएगा वो ख़ुद को हार जाएगा
क़िमार-ख़ाना-ए-जाँ में नया नहीं हूँ मैं

मिरे वजूद के अंदर मुझे तलाश न कर
कि इस मकान में अक्सर रहा नहीं हूँ मैं

मैं एक उम्र से ख़ुद को तलाशता हूँ मगर
मुझे यक़ीन नहीं, हूँ भी या नहीं हूँ मैं

मैं इक गुमान का इम्काँ हूँ 'इफ़्तिख़ार'-मुग़ल
कि हो तो सकता हूँ लेकिन हुआ नहीं हूँ मैं
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Iftikhar Mughal
रख-रखाव में कोई ख़्वार नहीं होता यार
दोस्त होते हैं, हर इक यार नहीं होता यार

दो घड़ी बैठो मिरे पास, कहो कैसी हो
दो घड़ी बैठने से प्यार नहीं होता यार

यार! ये हिज्र का ग़म! इस से तो मौत अच्छी है
जाँ से यूँ ही कोई बेज़ार नहीं होता यार

रूह सुनती है मोहब्बत में बदन बोलते हैं
लफ़्ज़ पैराया-ए-इज़हार नहीं होता यार

नौकरी, शाइ'री, घर-बार, ज़माना, क़द्रें
इक मोहब्बत ही का आज़ार नहीं होता यार

ख़ुश-दिली और है और इश्क़ का आज़ार कुछ और
प्यार हो जाए तो इक़रार नहीं होता यार

लड़कियाँ लफ़्ज़ की तस्वीर छुपा लेती हैं
उन का इज़हार भी इज़हार नहीं होता यार

आदमी इश्क़ में भी ख़ुद से नहीं घट सकता
आदमी साया-ए-दीवार नहीं होता यार!!

घेर लेती है कोई ज़ुल्फ़, कोई बू-ए-बदन
जान कर कोई गिरफ़्तार नहीं होता यार

यही हम आप हैं हस्ती की कहानी, इस में
कोई अफ़्सानवी किरदार नहीं होता यार
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