Raaz Yazdani

Raaz Yazdani

@raaz-yazdani

Raaz Yazdani shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Raaz Yazdani's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

4

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
सोचिए हम से तग़ाफ़ुल भी बजा है कि नहीं
कि यही मक़्सद-ए-अर्बाब-ए-फ़ना है कि नहीं

ज़ीस्त में लम्हा-ए-अंदोह-जफ़ा है कि नहीं
ऐ मोहब्बत कोई तेरी भी ख़ता है कि नहीं

पस्त कर देते हैं मौजों को उभरने वाले
डूबना ख़ुद न उभरने की सज़ा है कि नहीं

छाँव में फूलों की आँखें तो मिची जाती हैं
कौन देखे ये चमन जाग चुका है कि नहीं

हाँ मिरे इश्क़ ने सोचे थे बड़े हंगामे
तू ने छुप छुप के सहारा भी दिया है कि नहीं

क्या ग़लत इश्क़ को है जुर्म-ए-वफ़ा का इक़रार
हुस्न पर ज़हमत-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा है कि नहीं

तुझ को बेदारी-ए-गुलशन की क़सम है कि बहार
ज़ेहन-ए-इंसाँ भी कहीं जाग रहा है कि नहीं

सब हैं शाहिद के भुलाने का बहाना कर के
मैं ने हर वक़्त तिरा नाम लिया है कि नहीं

किस को जीने से है फ़ुर्सत जो ये सोचे कि मुझे
कोई काम और भी जीने के सिवा है कि नहीं

शुक्रिया आप के एहसास-ए-जफ़ा का लेकिन
ये करम फ़ित्ना-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा है कि नहीं

है अभी फ़ैसला बाक़ी कि दिलों पर अब तक
आप से कोई सितम हो भी सका है कि नहीं

राज़ फूलों पे बहारों का करम है लेकिन
यूँ भी कलियों का जिगर चाक हुआ है कि नहीं
Read Full
Raaz Yazdani
नहीं कि अपनी तबाही का 'राज़' को ग़म है
तुम्हारी ज़हमत-ए-अहद-ए-करम का मातम है

निसार-ए-जल्वा दिल-ओ-दीं ज़रा नक़ाब उठा
वो एक लम्हा सही एक लम्हा क्या कम है

किसी ने चाक किया है गुलों का पैराहन
शुआ-ए-मेहर तुझे ए'तिमाद-ए-शबनम है

क़ज़ा का ख़ौफ़ है अच्छा मगर इस आफ़त में
ये मो'जिज़ा भी कि हम जी रहे हैं क्या कम है

वो रक़्स-ए-शो'ला वो सोज़-ओ-गुदाज़-ए-परवाना
जिधर चराग़ हैं रौशन अजीब आलम है

हुदूद-ए-दैर-ओ-हरम से गुज़र चुका शायद
कि अब इजाज़त-ए-सज्दा है और पैहम है

शमीम-ए-ग़ुन्चा-ओ-गुल रंग-ए-लाला नग़्मा-ए-मौज
तिरे जमाल की जो शरह है वो मुबहम है

लताफ़तों से ज़माना भरा पड़ा है मगर
मिरी नज़र की ज़रूरत से किस क़दर कम है

फ़रेब दिल ने मोहब्बत में खाए हैं क्या क्या
हर इक फ़रेब पर अब तक यक़ीन-ए-मोहकम है

मिरी निगाह कहाँ तक जवाब दे आख़िर
तिरी निगाह का हर हर सवाल मुबहम है

अभी तो अपनी निगाहों के इल्तिफ़ात को रोक
अभी तो मंज़र-ए-हस्ती तमाम मुबहम है
Read Full
Raaz Yazdani