Jahangeer nayab

Jahangeer nayab

@jahangeer-nayab

Jahangeer nayab shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jahangeer nayab's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
बाइ'स-ए-आसूदगी है हश्र-सामानी मुझे
रास आती है बड़ी मुश्किल से आसानी मुझे

देख कर तेरी इनायत और तिरा लुत्फ़-ओ-करम
खल रही है यार अपनी तंग-दामानी मुझे

कर रहा है ज़ेहन में गर्दिश कोई धुँदला सा अक्स
लग रही है उस की सूरत जानी पहचानी मुझे

सोचने का ज़ाविया मैं ने बदल डाला है दोस्त
अब परेशानी नहीं लगती परेशानी मुझे

सौंप दी उस ने मुझे अपने बदन की सल्तनत
मिल गई हो मुफ़्लिसी में जैसे सुल्तानी मुझे

लुक़्मा-ए-गिर्दाब होने ही को था मैं और फिर
दफ़अ'तन आई नज़र इक मौज-ए-इमकानी मुझे

आज फिर खुलने लगी है मुझ पे रम्ज़-ए-काएनात
आज फिर होने लगी है ख़ुद पे हैरानी मुझे

सोचता हूँ ऊला मिसरा जब कभी 'नायाब' मैं
ख़ुद को लिखवाता है बढ़ कर मिस्रा-ए-सानी मुझे
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Jahangeer nayab
मैं ने कोशिश की बहुत लेकिन कहाँ यकजा हुआ
सफ़हा-ए-हस्ती का शीराज़ा रहा बिखरा हुआ

ज़ेहन की खिड़की खुली दिल का दरीचा वा हुआ
तब जहाँ के दर्द से रिश्ता मिरा गहरा हुआ

क्या पत्ता कब कौन उस की ज़द पे आ जाए कहाँ
वक़्त की रफ़्तार से हर शख़्स है सहमा हुआ

किस की याद आई मोअ'त्तर हो रहे हैं ज़ेहन-ओ-दिल
किस की ख़ुशबू से है सारा पैरहन महका हुआ

पेड़ के नीचे शिकारी जाल फैलाए हुए
और परिंदा शाख़ पर बैठा डरा सहमा हुआ

दो-क़दम भी अब तुम्हारे साथ चलना था मुहाल
राह तुम ने ख़ुद अलग कर ली चलो अच्छा हुआ

ज़िंदगी हर ज़ाविए से देखता हूँ मैं तुझे
है मिरी फ़िक्र-ओ-नज़र का दायरा फैला हुआ

छप गई पानी में अपनी छब दिखा कर जल-परी
आज फिर 'नायाब' मेरे साथ इक धोका हुआ
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Jahangeer nayab
मैं जब भी कोई मंज़र देखता हूँ
ज़रा औरों से हट कर देखता हूँ

कभी मैं देखता हूँ उस की रहमत
कभी मैं अपनी चादर देखता हूँ

नज़र का ज़ाविया बदला है जब से
मैं कूज़े में समुंदर देखता हूँ

कभी मेरे लिए थे फूल जिन में
अब उन हाथों में पत्थर देखता हूँ

सभी हैं मुब्तला-ए-ख़ुद-फ़रेबी
अजब दुनिया का मंज़र देखता हूँ

नहीं बदलाव के आसार कुछ भी
अभी हालात अबतर देखता हूँ

मुक़द्दर में लिखी वीरानियों में
ज़रा सा रंग भर कर देखता हूँ

नज़र आता है मदफ़न ख़्वाहिशों का
कभी जब अपने अंदर देखता हूँ

सुना है आग है उस का सरापा
चलो बाहोँ में भर कर देखता हूँ

बसीरत मुझ में है 'नायाब' ऐसी
मैं हर क़तरे में गौहर देखता हूँ
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Jahangeer nayab
अच्छा हूँ या बुरा हूँ मुझे कुछ नहीं पता
नज़रों में तेरे क्या हूँ मुझे कुछ नहीं पता

क्या तुझ में ढूँढता हूँ मुझे कुछ नहीं पता
मैं तेरा हो गया हूँ मुझे कुछ नहीं पता

आगाह हूँ मैं मंज़िल-ए-मक़्सूद से मगर
किस सम्त जा रहा हूँ मुझे कुछ नहीं पता

आवाज़ दे रहा है मुझे कौन बार बार
किस के लिए रुका हूँ मुझे कुछ नहीं पता

इतना मुझे पता है तुम्हें हूँ अज़ीज़ मैं
लेकिन तुम्हारा क्या हूँ मुझे कुछ नहीं पता

दीमक की तरह चाट रहा है जो कौन है
किस ग़म में घुल रहा हूँ मुझे कुछ नहीं पता

मैं ख़ूब जानता हूँ ये मंज़िल नहीं मिरी
आ कर कहाँ रुका हूँ मुझे कुछ नहीं पता

रहता हूँ किस ख़याल में 'नायाब' इन दिनों
क्या क्या मैं सोचता हूँ मुझे कुछ नहीं पता
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Jahangeer nayab
मरकज़ में था सो ध्यान में रक्खा गया मुझे
हर वक़्त इम्तिहान में रक्खा गया मुझे

इस के सिवा नहीं है मसीहा मिरा कोई
इक उम्र इस गुमान में रक्खा गया मुझे

अतराफ़ मेरे खींचा गया ख़ौफ़ का हिसार
डहते हुए मकान में रक्खा गया मुझे

मेरी ज़बाँ से क़ुव्वत-ए-गोयाई छीन कर
गूँगों की दास्तान में रक्खा गया मुझे

जौहर-शनास नज़रों से ओझल नहीं था मैं
क्यूँ कोएले की कान में रक्खा गया मुझे

पहरे बिठा दिए गए हर बात पर मिरी
दाँतों तले ज़बान में रक्खा गया मुझे

अच्छा मज़ाक़ है ये मिरी सादगी के साथ
फैशन-ज़दा दुकान में रक्खा गया मुझे

करना ही था सिपुर्द जो क़ातिल को एक दिन
इस दर्जा क्यों अमान में रक्खा गया मुझे

चारों तरफ़ से मुझ पे ज़मीं तंग की गई
कहने को आसमान में रक्खा गया मुझे

तलवार का सवाल यही जंग-जू से था
क्यूँ आज तक मियान में रक्खा गया मुझे

हरकत पे है जुमूद तो इज़हार पर सुकूत
'नायाब' किस जहान में रक्खा गया मुझे
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