मैं न कहता था मिरे यार बदल जाता है

  - Aadil Rahi

मैं न कहता था मिरे यार बदल जाता है
वक़्त कितना भी हो दुश्वार बदल जाता है

मैं ने बस दिल की सुनी वर्ना तिरे बारे में
लोग कहते थे ख़बर-दार बदल जाता है

हाकिम-ए-वक़्त यूँ मग़रूर न बन होश में आ
पीर आता है तो इतवार बदल जाता है

तुझ पे कैसे हो यक़ीं मुझ को कि अब तू यकसर
अपना कहता तो है हर बार बदल जाता है

ये नज़ाकत ये दिखावा ये तकब्बुर अच्छा
यानी दौलत से भी मेयार बदल जाता है

देखने वालो हक़ारत से न देखो मुझ को
भूख से जिस्म का आकार बदल जाता है

क्या बताऊँ कि मोहब्बत के सफ़र में राही
ग़म तो रह जाता है ग़म-ख़्वार बदल जाता है

  - Aadil Rahi

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