शराबी की बोतल का ये आईना था
कि मिर्ज़ा के मिसरे में ज़िक्र-ए-ख़ुदा था
सुख़नवर शराबों में डूबे हुए थे
शराबों में डूबा सुख़न मिल रहा था
हमारी तुम्हारी लड़ाई ही क्या थी
जो था सोचा समझा सा इक फ़ैसला था
दरख़्तों पे बैठे परिंद उड़ गए थे
कहीं दूर कोई निशाना लगा था
हमारी कहानी कहानी अलग थी
हमारी कहानी में हीरो मरा था
चुकाते हुए उसको गुज़री जवानी
विरासत में जो हम को क़र्ज़ा मिला था
कभी आशना थे कभी ग़ैर थे तुम
तुम्हारे तो चेहरे में चेहरा छुपा था
यकीं कैसे कर लें तेरी बात पर हम
उसे भी तो तूने यही सब कहा था
ख़यालों में रहने लगे थे 'रज़ा' तुम
जहाँ सब हक़ीक़त से बिल्कुल जुदा था
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