आज बाज़ार ख़रीदार पुराने निकले
खोटे सिक्के हैं जो उनके वो चलाने निकले
अपनी ढपली वो लिए राग सुनाने निकले
कुछ तमाशाई फ़क़त शोर मचाने निकले
ये जो जुगनू तो ग़ज़ब के ही सयाने निकले
जल के मर जाएँगे सूरज को बुझाने निकले
जिनका अपना ही नहीं कोई वजूद अब तक ही
मेरी हस्ती को वही लोग मिटाने निकले
दाग़ अब ढूँढ रहे अंधे मेरे चेहरे पर
और गूँगे मेरी आवाज़ दबाने निकले
हो गये हैं वो ज़मींदोज़ वहीं पर सारे
मेरी बुनियाद के पत्थर जो हिलाने निकले
ख़ाली निकले हैं निशाने तो सभी उनके ही
जो कमाँ हाथ लिए तीर चलाने निकले
जो मेरे क़त्ल में शामिल थे मेरे क़ातिल थे
मेरी मय्यत में वही काँधा लगाने निकले
की है तफ़्तीश जो मैंने तो ये मालूम हुआ
जो भी दुश्मन हैं मेरे दोस्त पुराने निकले
याद माज़ी को किया करते हैं ख़ुश होते हैं
भूल जाते हैं कि अब उनके ज़माने निकले
हो गया ग़र्क़ सफ़ीना तो अनीस उनका ही
मेरी कश्ती जो समंदर में डुबाने निकले
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