ख़ुद को अफ़सर बना लिया हमने
साथ में घर बना लिया हमने
शाहजादी हमें वो कहता था
अपना क़ैसर बना लिया हमने
दिल लगाने की अब ज़रूरत क्या
दिल को पत्थर बना लिया हमने
ज़िंदगी साथ चल नहीं सकती
एक ख़ंजर बना लिया हमने
ख़ुद-कुशी को हराम कहते हो
दिल सिकंदर बना लिया हमने
रोना गाना जहाँ मयस्सर हो
ऐसा इक दर बना लिया हमने
ज़ख़्म इतने कहाँ लगे मरहम
लौह नश्तर बना लिया हमने
उनकी ख़्वाहिश थी आख़िरी हमसे
उनको शौहर बना लिया हमने
वो क़यामत के बाद भी रहता
अपना दिलबर बना लिया हमने
पेश-ए-ख़िदमत हया मुनासिब थी
तब ये चादर बना लिया हमने
आप बेहतर रहे हमेशा से
और बेहतर बना लिया हमने
शायरी वो पसंद करता था
ख़ुद को शायर बना लिया हमने
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