तुम्हारी ग़ज़लों को महफ़िलों में जो गुनगुनाए तो क्या करोगे
तुम्हारी पलकों पे ख़्वाब अपने कोई सजाए तो क्या करोगे
वो जिसके वादे पे कर भरोसा जो छोड़ दी तुमने मेरी दुनिया
वही जो अहद-ए-वफ़ा किसी दिन नहीं निभाए तो क्या करोगे
मुझे रुलाकर के छोड़ जाने की ज़िद में जिसको हँसाया तुमने
वही मुहब्बत में तुमको जाना सदा रुलाए तो क्या करोगे
बना के अपना दिखा के सपना कोई जो अपना तुम्हें रुलाए
कभी मुहब्बत के पाठ तुमको जो वो पढाए तो क्या करोगे
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