यक़ीं मानो हक़ीक़त है क़सम से
हमें तुमसे मोहब्ब्त है क़सम से
ये जो तिल है तुम्हारे लब के ऊपर
बहुत ही ख़ूबसूरत है क़सम से
सुकूँ तन्हाई में मिलता है दिल को
मुझे महफ़िल से नफ़रत है क़सम से
किसी से इश्क़ करना और छुपाना
मोहब्ब्त में सियासत है क़सम से
जिसे तुझसे अदावत है जहाँ में
मुझे उससे अदावत है क़सम से
मैं उसको रोज़ ये समझा रहा हूँ
मोहब्बत इक इबादत है क़सम से
बिछड़ के तुझसे में ज़िन्दा हूँ अब तक
ज़माने भर को हैरत है क़सम से
हमारा हाल से बे-हाल होना
मोहब्बत की बदौलत है क़सम से
तुम्हारा नाम सुबह-ओ-शाम लेना
मता-ए-जाँ इबादत है क़सम से
'शजर' है वक़्त मुझ पर इम्तिहाँ का
मुझे तेरी ज़रूरत है क़सम से
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