तितलियाँ कहती हैं हर गुल की ज़ियारत करना
बाग़बाँ गुलशन-ए-रिज़वाँ से मोहब्बत करना
अपने माँ बाप की उस्ताद की इज़्ज़त करना
अपनी औलाद को दिन रात नसीहत करना
ऐ मोहब्बत के पयम्बर तेरी तक़लीद में हूँ
रोज़-ए-महशर तू मेरी आके शफ़ाअत करना
बिन बुलाए नहीं होना कहीं ख़ुशियों में शरीक
हाँ मगर ग़म में हर इक शख़्स के शिरकत करना
मदफ़न-ए-हज़रत-ए-फ़रहाद से आती है सदा
मुनकिर-ए-इश्क़ से हर वक़्त ही नफ़रत करना
दरमियाँ इश्क़ के आ जाए क़बीला जो कभी
तुम पे वाजिब है क़बीले से बग़ावत करना
ख़्वाब अपने तेरी आँखों में यूँ छोड़ आया हूँ
है ग़लत बात अमानत में ख़यानत करना
फ़स्ल-ए-गुल आई है सय्याद निकल आए हैं
मेरे माबूद परिंदो की हिफ़ाज़त करना
इब्ने आदम है तुम्हें हज़रत-ए-आदम की क़सम
बिंत-ए-हव्वा की हर इक दौर में इज़्ज़त करना
हाकिम-ए-वक़्त सज़ा देने से पहले ये बता
क्यों ग़लत है किसी अफ़राद की चाहत करना
हज़रत-ए-दिल चलो मैदान-ए-मोहब्बत में चलो
नोश चलकर के वहाँ जाम-ए-शहादत करना
है शब-ए-क़द्र के मानिंद शब-ए-वस्ल शजर
आज की शब में तहेदिल से इबादत करना
Read Full