इन निगाहों को ख़बर क्या शोख़ियाँ उस इश्क़ की
ज़िंदगी-ओ-मौत में है डोरियाँ उस इश्क़ की
पल रहा अंदेशा हम को चाह की सौग़ात का
गाह रोती गाह हँसती सीपियाँ उस इश्क़ की
तुम कहो अब तय करें तो कैसे मंज़िल प्यार में
ख़ुद से ही छिपती रहीं, परछाइयाँ उस इश्क़ की
बद-गुमानी की कसक पैदा हुई जो उन दिनों
दिल में हम ने रख-रखी है ख़ामियाँ उस इश्क़ की
आप की ला-हासिली को अपनी क़िस्मत मान कर
ज़िंदगी का हर वो लम्हा बेड़ियाँ उस इश्क़ की
दहर में हिज़रत से ख़ुद का मुर्दगाँ होना मेरा
इक हक़ीक़त थी ये मेरी झुर्रियाँ उस इश्क़ की
दश्त में इक शहर था पर अब नहीं उस के निशाँ
आज हमको है मिली कुछ चिठ्ठियाँ उस इश्क़ की
कुछ धुँए के बादलों ने नभ उठा सिर पर लिया
भूल में थे, है यहीं पर बस्तियाँ उस इश्क़ की
जिन के ख़ातिर शे'र लिक्खे वो कभी सुनते नहीं
याद आती हैं हमें अब मस्तियाँ उस इश्क़ की
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