बड़ा वीरान है मौसम कभी मिलने चले आओ
हर इक जानिब हैं घेरे ग़म कभी मिलने चले आओ
यहाँ चारों तरफ़ लोगों की वैसे ख़ूब रौनक़ है
मगर जैसे हो कोई कम कभी मिलने चले आओ
तुम्हें गर इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों का
तुम्हारा वस्ल है मरहम कभी मिलने चले आओ
अँधेरी रात गहराई इधर रोता ये तन्हा दिल
दिए की लौ करूँ मद्धम कभी मिलने चले आओ
हवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू रुलाती है
नहीं आएगा ये मौसम कभी मिलने चले आओ
लगी है चोट दिलपर क्या कहूँ मैं कैसे बतलाऊँ
लगाने को ज़रा मरहम कभी मिलने चले आओ
नहीं मैं जी सकूँगा बिन तुम्हारे जान इक पल भी
तुम्हें कहता फिरूँ हर दम कभी मिलने चले आओ
ज़माने की निगाहों ने हमें कितना डराया है
नहीं होंगे जुदा तुम हम कभी मिलने चले आओ
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