0

देख ले मुझको तो दीवार से सट जाती है - Vishnu virat

देख ले मुझको तो दीवार से सट जाती है
वो परी शर्म की चादर से लिपट जाती है

इश्क़ बिखरा तो जफा, अश्क़ ग़म-ओ-हिज्र बना
धूप टूटे तो कई रंग में बँट जाती है

तीसरा आया मुहब्बत के गणित में जब भी
दो की संख्या भी यहाँ तीन से कट जाती है

हुस्न ऐसा कि फिसलती हैं निगाहें सबकी
ऐसा रस्ता है कि हर कार पलट जाती है

एक तू है कि किताबों में नहीं आ पाया
एक दुनिया है कि मिसरे में सिमट जाती है

दोस्तों ने यही कह कह के पिलाई मुझको
एक सिगरट से कहाँ ज़िंदगी घट जाती है

- Vishnu virat

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Vishnu virat

As you were reading Shayari by Vishnu virat

Similar Writers

our suggestion based on Vishnu virat

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari