माना हम मशहूर नहीं हैं
पर मंज़िल से दूर नहीं हैं
क़दमों में दस्तार को रख दें
इतने भी मजबूर नहीं हैं
ना-हक़ राह पे चलने वाले
पाॅंव से क्या माज़ूर नहीं हैं
हर दिन मौला देता है ज़ीस्त
हम फिर भी मशकूर नहीं हैं
शीशा में ख़ुद को पहचानो
शीशे चकनाचूर नहीं हैं
दीन घराने से है निस्बत
फिर भी हम मग़रूर नहीं हैं
हम से भी दो बातें कर लो
हम कोई लंगूर नहीं हैं
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