वीराने में रौशन एक दिया छूकर, - Abhas Nalwaya Darpan

वीराने में रौशन एक दिया छूकर,
रक़्स करूँ मैं तेरे नक़्श-ए-पा छूकर

मुमकिन है उस बुत में कोई रहता हो,
पत्थर जैसा तो नहीं लगा छूकर

दस्तक देने आया था दरवाज़े पर,
लौट गया जो बस मेरा साया छूकर

तब तक कोई हुस्न नहीं खुलता मुझपर,
जब तक देख नहीं लेता पूरा छूकर

जुगनू , गुलशन, शबनब और चंदन का पेड़,
तुझको छूने आया हूँ क्या क्या छूकर,

इक बात मेरे दिल को चुभने वाली थी
इक तीर बड़े करीब से निकला छूकर

'दर्पन' से ही पूछो उसके दिल का दुःख,
चारागर क्या खाक़ बताएगा छूकर

- Abhas Nalwaya Darpan
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